दो विपरीत दिशाओं में

एक समय की बात है दुख और व्याकरण की लड़ाई में दुख ने व्याकरण से कहा, ‘मेरा कोई व्याकरण नहीं होता।’

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हाथ हमारे

वे हमारे हाथ हैं उन्होंने उठाया है बोझा उन्होंने कलम और तलवार चलाई है उन्होंने हथौड़े से कूटा है लोहा तो पेंसिल भी छीली है उन्होंने काटे हैं पहाड़ तो तराशे हैं हीरे-मोती भी।

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मानव छोड़

कठोर सच! मानव मानव बनने की होड़ में मानव छोड़ सब कुछ बना यथा नेता-अभिनेता, क्रेता-विक्रेता, कवि-लेखक, स्वामी-सेवक और बहुत कुछ........

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