तीन गज़लें
तीन ग़ज़लें Asaf-ud-dowlah listening to musicians in his court- Wikimedia Commons

तीन गज़लें

कब-कहाँ होता है मेरा आना-जाना ये तो पूछ किसके-किसके है खयालों में ठिकाना ये तो पूछहम न जीते हैं न जीतेंगे कभी शायद मगर चाहता है क्यों कोई हमको हराना ये तो पूछ

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 नीलकंठ
नीलकंठ Troubled by Wassily Kandinsky- WikiArt

नीलकंठ

जब हम अपनी हवस में ऊँचा और ऊँचा उठने के लिए हवा में घोल रहे होते हैं–- जहर तब वह दिन में नीलकंठ की तरह उसका विष चूस रहा होता है ताकि हम बचे रह सकें–- जहरीली हवाओं से

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 प्रतिश्रुति
प्रतिश्रुति-The-open-door-by-Henri-Martin--WikiArt

प्रतिश्रुति

हाँ, कहा था तुमको– मेरा दर खुला है खुला ही रहेगा तुम्हारे लिए तब मालूम नहीं था कि सप्तपदी में एक ऐसा भी विधान है जिसमें पाणिग्रहण से पहले वर-वधू से अपने-अपने पूर्व संबंधों को स्वाहा– कर कहा जाता है– ‘शुद्ध होने को!!’

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