मुक्तिपर्व
बह सकूँ वादियों में निस्सिम सी मैं बाँसुरी का राग हूँ मैं मन की वो आवाज़ हूँ सुबह की पाक

मुक्तिपर्व

बह सकूँ वादियों में निस्सिम सी मैं बाँसुरी का राग हूँ मैं मन की वो आवाज़ हूँ सुबह की पाक

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 नियति
Me and the Moon by Arthur Dove- WikiArt

नियति

संपूर्ण समर्पण सा वज्र के लिए दधीचि होना मर्मान्तक पीड़ा सा दधीचि का वज्र होना... चलती हैं दोनों क्रियाएँ जन्म भर...! नियति बस हँसती है नियन्ता वो नहीं निर्भर करता…

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 जीने के लिए
In the warm land by Mykola Yaroshenko- WikiArt

जीने के लिए

हक़ीक़त में कमज़ोर तुम थे मैं नहीं, तुम समझ ना पाए कभी झूठ के फूस पर सुलगता ये अंगार काफ़ी है मेरे जीने के लिए

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 हमेशा रहेगा देश
Cart with Black Ox by Vincent van Gogh- WikiArt

हमेशा रहेगा देश

पके भोजन तक थी सपनों की दौड़ कबीलों में बसा आदमी प्रकृति के भयानक रूपों से डरता था मगर देश से प्यार करता था

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