किसान
तुम जिस ज़मीन को पूँजी के बूटों तले रौंदना चाहते हो उनके लिए वही भारत माता है इसीलिए उनके पाँव
तुम जिस ज़मीन को पूँजी के बूटों तले रौंदना चाहते हो उनके लिए वही भारत माता है इसीलिए उनके पाँव
एक चमकीली रात में उदास तारों के साथ मैं निकल जाता हूँ अक्सर किसी अनजान सफ़र पर और देखता हूँ नगरीकरण से प्रताड़ित गाँव का पुराना बरगद छठ मैया के…
तुमने मेरे लिए अनन्त के अछोर तक वहीं पर हैं तीर्थ और निर्वाण का सुख भी।
मँडराने लगते हैं ख़तरे उनके अपने होने पर झोपड़ियाँ घुटने लगती हैं एक महल की आमद से
आगे बढ़ने की ललक में किसने देखा लोग कितना पीछे छूटे जा रहे हैंहमने रिश्तों के लिए दौलत कमाई अब उसी दौलत से रिश्ते जा रहे हैं
अपनी कमियाँ भी नज़र आएँगी ही उसमें आदमी मन को अगर दर्पण करे तब तोकुछ भी तो बचपन सरीखा है नहीं निश्छल अपनी हर इक उम्र वह बचपन करे तब तो