उतरती बाढ़
दुश्मन के गढ़ में घुस कर उसे नेस्तनाबूद करने के बाद जैसे लौट आती है विजयिनी सेना छोड़ कर ध्वंसावशेष और अपनी विजय के ढेरों पद-चिह्न ठीक वैसे ही इत्मिनान,…
दुश्मन के गढ़ में घुस कर उसे नेस्तनाबूद करने के बाद जैसे लौट आती है विजयिनी सेना छोड़ कर ध्वंसावशेष और अपनी विजय के ढेरों पद-चिह्न ठीक वैसे ही इत्मिनान,…
भले मत आना लेकिन आना ज़रूर अकुला, अकेले में हर्ष में, उल्लास में या गहन संत्रास में
जब तक आप कविता लिखते रहते हैं न जाने आपने ध्यान दिया है कि नहीं– फन फैलाए साँप घूमता ही रहता है आसपास फुफकारते हुए सृजन के क्षणों को डंसने की जन्म लेते ही अक्षर को मारने की भरसक कोशिश करते हुए
‘प्यार ही तो है इस संसार के लिए जरूरी साधन’ यह घोषणा करने के लिए मस्जिद और मंदिर की तरह नहीं इंसानों की तरह करते ही रहेंगे कोशिश।
सब शब्दों से अनछुआ एक विचित्र शब्द सा कराहता है मन। विचित्र बात है थकान मिटाते ही अगले पल फिर से प्रकट हो जाती है वह किसी दूसरे रूप में। फिर से संघर्ष... संसार के दुखों से बेचैन मन कोई पाबंदी भी नहीं रहम भी नहीं।