खत्म न होने वाला सफर
मनौतियाँ, साष्टांग प्रणाम, प्रार्थनाएँ इन्हीं में पाते हैं शांति भगवान का ध्यान करते हैं पर साथी मनुष्य पर नहीं देते ध्यान।
मनौतियाँ, साष्टांग प्रणाम, प्रार्थनाएँ इन्हीं में पाते हैं शांति भगवान का ध्यान करते हैं पर साथी मनुष्य पर नहीं देते ध्यान।
आश्चर्य किया करते थे क्या तुमने नहीं देखा उन जिद्दी पौधों को जो चट्टानों की दरारों में
अगले ही पल, खिलखिलाती नर्तन करती, चली गई साथ देने की कोशिश में
यहीं पे साँप हजारों दिखाई देते हैं इसी गली से गुज़रना बहुत ज़रूरी हैहज़ार खार चुभेंगे गुलों को चुनने में मगर ये काम भी करना बहुत ज़रूरी है
सबको आता नहीं कानून से लड़ने का हुनर आस मजबूर की इनसाफ़ पे ठहरी देखी
मुट्ठी से सरक गई यूँ धूप गर्म हवा मानो मिट्टी से नीम चुरा गई छिटकी रोशनी को सँभालते-सँभालते शाम वे कयामत सी आ रही।