आना फिर…!
The Undergrowth in the Forest of Saint-Germain by Claude Monet- WikiArt

आना फिर…!

सचकहीं कुछ भी नहीं थाबस हवा के पाँवपत्थर हो गए थेतड़पकर रह गए थे शब्दमन के हाशिये परकाँपते लब परछुटता-सा जा रहा था

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 वह लौटेगा
Butea monosperma, Flame of the forest, Free Fire- Wikimedia Commons

वह लौटेगा

वह जन्मेगा बार बार राजपथ की कंकरीली छाती चीर कचनार दूब की तरह!वह गाएगा क्योंकि गाना ही सभ्यता की

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 आदिवासी
Forest lake by Isaac Levitan- WikiArt

आदिवासी

फूलों के परिधान पहन जब-जब सरहुल आता है माँदर, ढोल, नगाड़े बजते जंगल भी गाता है पाँवों में थिरकन, तन में सिहरन आँखों में ख्बाब!

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 ब्रह्म
St. Anthony Visiting St. Paul the Hermit in the Desert (detail) by Matthias Grünewald- WikiArt

ब्रह्म

मैं मौन हूँ, मैं खामोश हूँ, मैं चुप हूँ चराचर जगत डूबा गहन सन्नाटे में मैं अनंत शून्य हूँ आकाश समेटे धरा पर

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 प्लेटफार्म पर रात
Gare St.-Lazare_ Arrival of a Train by Claude Monet- WikiArt

प्लेटफार्म पर रात

अँधेरा कम नहीं होता हर सीटी खत्म करती है एक इंतज़ार धीरे-धीरे ऊँघने लगते हैंसभी सवाल निरूत्तर से!

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 एक आदमी का क़द
Shadows by Nicholas Roerich- WikiArt

एक आदमी का क़द

लोग बन गए ठीक वैसा, जैसा वह चाहा पर उनकी परछाई बड़ी नहीं बनी, रही बौनी ही हंगामा फिर बरपा वह मुस्कुराया फिर हँसा ठठाके

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