
The crowd crowds around the emperor in the gardens of the Elysee by Nicolas Toussaint Charlet- WikiArt(1)
चेहरे
भीड़ कभी-कभी महज भ्रम होती है कभी दिखती, कभी अदृश्य होती है कभी चलती, कभी रुकती है कभी सोती, कभी झुकती है।
भीड़ कभी-कभी महज भ्रम होती है कभी दिखती, कभी अदृश्य होती है कभी चलती, कभी रुकती है कभी सोती, कभी झुकती है।
उत्तरआधुनिकता की लपेटे हुए चादर आज का समय धीरे-धीरे बढ़ रहा
नेपथ्य के वादक थोड़ा झिझक रहे थे पतझर से पृथ्वी सो रही थी पहाड़ से चिपककर भय में तुमने कहा कि मेरा वादक पहले सोई पृथ्वी को जगाए
कोई-न-कोई रंग है हरा काला उजला नीला बैंगनी चंपई गेहूँवा भंटई रंग
तमस-आवरण भेद देता है अँधेरे का अंतस्तल निर्निमेष झाँकता बढ़ता है किंतु अँधेरे का राज्य अब भी बना हुआ अप्रमेय
इन अभागे दिनों में कलाकार के कपड़े फटे हों जब मैं कैसे जगा दूँ सोई हुई पृथ्वी को सपने देखते पहाड़ को और यह भी कि मेरा समय रेत से घिरा है पानी से नहीं