
तौबा
तुम्हें तो पता होना चाहिए कि असम के बराक क्षेत्र में साठ के दशक में कुछ बंगाली युवाओं ने इसी बंगला भाषा के लिए अपनी शहादत तक दी थी। और उसके प्रभावस्वरूप असम में बंगला भाषा को भी राजभाषा के रूप में मान्यता मिली थी।’
तुम्हें तो पता होना चाहिए कि असम के बराक क्षेत्र में साठ के दशक में कुछ बंगाली युवाओं ने इसी बंगला भाषा के लिए अपनी शहादत तक दी थी। और उसके प्रभावस्वरूप असम में बंगला भाषा को भी राजभाषा के रूप में मान्यता मिली थी।’
छोटे शाह के नजदीकियों को तमाम हालात का इल्म था। वो मैनेजर की बेजा हरकतों से भी वाकिफ़ थे। पर शाह मंजिल की दीवारों पर उनकी गिरफ्त कमजोर हो चली थी। शाह मंजिल की तमाम बेगमें बस्ती के अपराधियों के हाथों बेबस हो गई थीं।
अविरल बहती नदी की तरह कभी उछाल मारती तो कभी मंथर गति से निरंतर बहते हुए किसी भी रंग में घुलने मिलने को तैयार, ऐसी ही तो थी वो सरिता
विमलेश त्रिपाठी, अनमोल और विभाषचंद्र, तीनों बरबीघा के हटिया चौक पर खड़े आपस में गप्पिया रहे थे। तभी बस स्टैंड रोड की ओर से मानस आता दिख गया। विमलेश बोला, ‘देखना आज मानस क्या-क्या करके आया है उसी के मुँह से उगलवाता हूँ।’
शाम को कॉलेज से लौटकर रोज की तरह डॉ. सुहासिनी डाक देखने लगी तो एक लिफाफे पर दृष्टि टिक गयी...किसका पत्र होगा? प्रेषक के स्थान पर भी कुछ नहीं लिखा था।
गोविंदपुर के निवासी रामनारायण का विचार था कि पढ़े-लिखे लोग कभी झूठ नहीं बोलते। वे लोग ज्ञानी और सभ्य होते हैं। अनपढ़ लोग ही ज्यादातर असभ्य होते हैं और उन्हें समाज के तौर-तरीकों का ज्ञान नहीं होता। इसी भावना से जब कभी उसके गाँव में कोई अफसर या पुलिस अधिकारी आता तो वह उनके साथ बड़े अदब के साथ पेश आता है। उसकी इज्जत करता और जरूरत पड़ने पर सेवा भी करता। अफसर ही नहीं बल्कि गाँव के लोग भी उसके इस शिष्ट व्यवहार पर खुश थे।