नेत्रदान
पूर्वजन्म के शाप तथा पाप-पुण्य के गोरखधंधे से निकलकर विज्ञान ने उसे दो आँखें दे दीं। ‘वाह! कितनी बेजोड़ हैं ये आँखें, कितनी अनमोल हैं ये आँखें!’
पूर्वजन्म के शाप तथा पाप-पुण्य के गोरखधंधे से निकलकर विज्ञान ने उसे दो आँखें दे दीं। ‘वाह! कितनी बेजोड़ हैं ये आँखें, कितनी अनमोल हैं ये आँखें!’
ओफ्फोह! यह चुड़ैल आज मुझे पढ़ने नहीं देगी! कोई झख इसके सिर पर सवार है। इसकी चिल्ल-पों के मारे पढ़ाई में मन ही नहीं लग रहा है।...बाप रे बाप!
उसे न चाहिए वैसी बीवी जिसे दुनिया परी कहती हो, जिसे कला और संगीत से प्रेम हो सौंदर्य और फैशन में बेजोड़ हो। वह तो इसी साँवली और देहाती छोकरी में संसार का सारा सौंदर्य देखेगा, इसी माटी की मूरत में वह अपने तमाम अरमानों को सन्निहित पाएगा। शारदा की नजरों में वह किसी रूपसी से कम नहीं।