बापू के साबरमती आश्रम से
Gandhi Abbas Tyabji- Wikimedia Commons

बापू के साबरमती आश्रम से

वर्ष 2017 का नवंबर माह। चम्पारण सत्यागह का शताब्दी वर्ष चल रहा था। बिहार सरकार की पहल पर पटना के ज्ञान भवन में एक विचार गोष्ठी आयोजित थी। बैठक में…

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अपने अपने नामवर

बाद में जब वे सहाराश्री से जुड़े तो उन्हें फोन किया। उन्होंने कहा कि एक साप्ताहिक पत्र शुरू होनेवाला है। बेहतर होगा, एक बार आप मंगलेश डबराल से मिल लें। उनके कहने के बावजूद मैं मंगलेश जी से मिलने नहीं गया। मंगलेश जी से मेरा परिचय बहुत पहले से था मगर कभी भी उन्होंने ऐसी कोई उत्सुकता नहीं दिखाई कि उनसे मैं मिलता। फिर भी अपने बलबुते मेरा संघर्ष जारी था। बहुत बाद में साहित्य अकादेमी परिसर में नामवर जी मिल गए। वे पार्किंग में गाड़ी से उतर रहे थे। गाड़ी सहारा की ओर से उन्हें मिली थी। देखा तो रुक गए।

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हरिवंश राय ‘बच्चन’ के वे पत्र

बच्चन के अनगिन पत्र शिवपूजन सहाय साहित्य-समग्र में भी प्रकाशित हैं जिनमें उनके लिखे दो पत्र मेरे नाम से भी हैं

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क्या उन्हें बच्चे की याद आती होगी

अमर सिंह जवंदा जब 1977 में पटियाला (पंजाब) के पास के अपने गाँव चंदू माजरा से बर्लिन आए थे तब किसी भी देश में आने के लिए वीजा की जरूरत नहीं होती थी। ऐसा वे कहते हैं। उस समय भारत में जनता पार्टी की सरकार बन चुकी थी और जर्मनी के भी राजनैनिक हालात बदल रहे थे। उनके तीन भाई, पत्नी और इकलौता बेटा हरदीप गाँव में ही रह गए। उन्होंने 1986 में बर्लिन के पश्चिमी इलाके में पहला भारतीय रेस्त्राँ खोला। उस रेस्त्राँ का नाम उन्होंने ‘टैगोर रेस्त्राँ’ रखा। तब से लेकर अब तक बर्लिन में सैकड़ों भारतीय रेस्त्राँ खुल गए हैं।

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 कभी मनुहार, कभी फटकार!
Jawaharlal Nehru with Villagers in Rajasthan_Wikimedia Commons

कभी मनुहार, कभी फटकार!

पं. जवाहर लाल नेहरू के पहलेपहल दर्शन मुझे 1937 के चुनाव में आरा में हुए थे। मैं स्कूल का छात्र था और घर में सबसे छोटा था, इसलिए साइकिल से अकेला सड़क पर जाना या किसी सभा-सोसाइटी में जाना बुजुर्गों ने मना कर रखा था।

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 वह विस्मयकारी व्यक्तित्व!
वह विस्मयकारी व्यक्तित्व

वह विस्मयकारी व्यक्तित्व!

‘एडवानटेज इन’–चिल्लाते हुए मास्टर साहब ने जोर से कहा–“देखिए, ध्यान से खेलिए, गेम हमारा होकर रहेगा।” मैंने बल्ला सँभालते हुए कसकर बॉल को बेस लाइन पर गिराया, कोई उसे लौटा न सका और गेम हमारा होकर रहा।

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