क्या उन्हें बच्चे की याद आती होगी

अमर सिंह जवंदा जब 1977 में पटियाला (पंजाब) के पास के अपने गाँव चंदू माजरा से बर्लिन आए थे तब किसी भी देश में आने के लिए वीजा की जरूरत नहीं होती थी। ऐसा वे कहते हैं। उस समय भारत में जनता पार्टी की सरकार बन चुकी थी और जर्मनी के भी राजनैनिक हालात बदल रहे थे। उनके तीन भाई, पत्नी और इकलौता बेटा हरदीप गाँव में ही रह गए। उन्होंने 1986 में बर्लिन के पश्चिमी इलाके में पहला भारतीय रेस्त्राँ खोला। उस रेस्त्राँ का नाम उन्होंने ‘टैगोर रेस्त्राँ’ रखा। तब से लेकर अब तक बर्लिन में सैकड़ों भारतीय रेस्त्राँ खुल गए हैं।

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 कभी मनुहार, कभी फटकार!
Jawaharlal Nehru with Villagers in Rajasthan_Wikimedia Commons

कभी मनुहार, कभी फटकार!

पं. जवाहर लाल नेहरू के पहलेपहल दर्शन मुझे 1937 के चुनाव में आरा में हुए थे। मैं स्कूल का छात्र था और घर में सबसे छोटा था, इसलिए साइकिल से अकेला सड़क पर जाना या किसी सभा-सोसाइटी में जाना बुजुर्गों ने मना कर रखा था।

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 वह विस्मयकारी व्यक्तित्व!
वह विस्मयकारी व्यक्तित्व

वह विस्मयकारी व्यक्तित्व!

‘एडवानटेज इन’–चिल्लाते हुए मास्टर साहब ने जोर से कहा–“देखिए, ध्यान से खेलिए, गेम हमारा होकर रहेगा।” मैंने बल्ला सँभालते हुए कसकर बॉल को बेस लाइन पर गिराया, कोई उसे लौटा न सका और गेम हमारा होकर रहा।

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