क्या उन्हें बच्चे की याद आती होगी
अमर सिंह जवंदा जब 1977 में पटियाला (पंजाब) के पास के अपने गाँव चंदू माजरा से बर्लिन आए थे तब किसी भी देश में आने के लिए वीजा की जरूरत नहीं होती थी। ऐसा वे कहते हैं। उस समय भारत में जनता पार्टी की सरकार बन चुकी थी और जर्मनी के भी राजनैनिक हालात बदल रहे थे। उनके तीन भाई, पत्नी और इकलौता बेटा हरदीप गाँव में ही रह गए। उन्होंने 1986 में बर्लिन के पश्चिमी इलाके में पहला भारतीय रेस्त्राँ खोला। उस रेस्त्राँ का नाम उन्होंने ‘टैगोर रेस्त्राँ’ रखा। तब से लेकर अब तक बर्लिन में सैकड़ों भारतीय रेस्त्राँ खुल गए हैं।