आदमी की आयु

आदमी की आयु

संसार की सृष्टि के बाद भगवान के सामने प्रश्न उठा, हर एक प्राणी को कितने वर्ष की आयु दे दी जाए? उसने पहले यह सोचा कि, सभी प्राणियों को समान वर्ष की आयु दे दी जाए। इसके बाद उसके सामने सबसे पहले गधा आ गया। भगवान ने उससे पूछा “तुम्हें तीस वर्ष की आयु मैं दे रहा हूँ। तुम्हें कम तो नहीं मालूम होगी?”

“कम?” गधे ने पूछा, “तीस वर्ष तक जिंदा रहकर मैं क्या करूँगा? आप तो जानते ही हैं, मेरी आयु में हमेशा कष्ट के पहाड़ों को ही उठाना पड़ता है। हमेशा बोझ ढोना पड़ता है और कूड़े में से जो कुछ मिल जाए वही खाने को मिलता है। दूसरों को कम से कम रोटी का टुकड़ा खाने को मिल सकता है, पर मेरे लिए बिना मार खाए, कुछ नहीं मिल सकता। 30 वर्ष की लंबी आयु इसी तरह मैं कैसे बिता सकूँगा? कुछ वर्ष तो कम कर ही दीजिए।”

भगवान को उसपर तरस आई, और उसने कहा–“अच्छा तुमको मैं 18 वर्ष की ही आयु दे रहा हूँ।”
उस पर गधा खुशी से चला गया।

इसके बाद कुत्ता आ गया। भगवान ने वही प्रश्न कुत्ते से भी किया। उसने कहा, “गधे को मैंने 30 वर्ष की आयु देनी चाही, परंतु उसे वह लंबी मालूम पड़ी। तुम्हें 30 वर्ष ज्यादा तो नहीं मालूम पड़ेंगे?”

“क्यों?” कुत्ते ने पूछा, “मेरे जीवन में गधे से ज्यादा सुख थोड़े ही हैं? हमेशा भूँकते-भूँकते और दौड़ते-दौड़ते तीस वर्ष की आयु मैं कैसे ढो सकूँगा? और जब बुढ़ापा आ जाएगा, तब तो मेरे कष्टों की सीमा न रहेगी।”

तब भगवान ने कुछ सोचकर कहा, “अच्छा, 12 वर्ष की आयु मैं तुम्हें दे रहा हूँ।”
इस पर कुत्ता खुशी से चल दिया।

उसके बाद बंदर आया। भगवान ने वही प्रश्न उससे किया–“तीस वर्ष की आयु तुम्हें तो बोझ मालूम नहीं होगी? गधे और कुत्ते को 30 साल भारी मालूम हुए।”

“लेकिन” बंदर ने कहा, “मेरा जीवन उन दोनों से बदतर है। बोझ ढोने का काम मुझे नहीं करना पड़ता। फिर भी लोगों को रिझाने के लिए मुझे खेल तमाशे करने पड़ते हैं, बार-बार मुँह बिचकाना पड़ता है। इस पर लोग मेरी ओर खाने के लिए जो चीजें फेंकते हैं, वे या तो सड़ी गली होती हैं या सिर्फ कंकड़-पत्थर, इस अपमान के जीवन को कौन सुखी कहेगा? इसलिए कुछ वर्ष कम अवश्य ही कर दीजिए।”

भगवान ने फिर सोच कर कहा, “अच्छा, तुम्हें 10 वर्ष की आयु मिल जाएगी।” बंदर भी खुशी से छलाँग मारकर चला गया।

फिर आदमी की बारी आई। भगवान ने उससे भी पूछा, “तीस वर्ष की आयु तुम्हारे लिए तो बोझ नहीं मालूम होगी?”

“तीस ही वर्ष की आयु?” आदमी ने पूछा और कहा “30 वर्ष तो बहुत ही कम मालूम पड़ेंगे। अभी मैंने मकान बनवाना शुरू किया है। बगीचे में पेड़-पौधे लगाए हैं। इस तरह सुख की आशा में कुछ दिन न रहा कि मुझे मर जाना पड़ेगा। इसलिए मेरी आयु कुछ बढ़ाई नहीं जा सकती? कुछ तो बढ़नी चाहिए।”

भगवान ने कुछ सोचा और कहा–“अच्छा, गधे को 30 साल की आयु ज्यादा मालूम हुई। उसे 18 ही वर्ष मैंने दिये हैं, तुम्हारे लिए उसकी 12 वर्ष की बाकी आयु और दे रहा हूँ।”
आदमी को इससे संतोष नहीं हुआ। उसने कहा, “फिर भी इतनी-सी आयु कम ही पड़ जाएगी। और भी कुछ बढ़ाई नहीं जा सकेगी?”

भगवान ने सोच कर कहा–“कुत्ते की 18 वर्ष की बची आयु मैं तुम्हें और दे रहा हूँ। अब तो संतोष है?”

फिर भी आदमी ने कहा, “यह भी कुछ कम ही मालूम होगी” और फिर भगवान के पैर छूते हुये उसने गिड़गड़ा कर कहा, “और भी कुछ वर्ष मेरी आयु बढ़ा दीजिए।”

भगवान ने फिर सोच लिया और कह दिया, “इतनी आयु तो तुम्हारे लिए काफी है। क्या करोगे ज्यादा लेकर?”

फिर भी आदमी नहीं माना। उसने काफी मिन्नतें भी कीं।

जो कुछ हो, भगवान की सबसे प्रिय सृष्टि आदमी ही तो था। उसका हठ पूरा करना उसका काम ही था।

आखिर में भगवान ने कहा, “बंदर की बची हुई 20 वर्ष की आयु मैं तुम्हें और दे रहा हूँ। लेकिन अब ज्यादा मत माँगना।”

आदमी ने देखा अब माँगने से मिलना कठिन है। इसलिए जो मिला है उसे लेकर विदा होना ही ठीक है। इसलिए असंतोष के साथ ही वह आखिर वहाँ से चल दिया।

तबसे आदमी की आयु 80 वर्ष की हुई। उसकी पूरी लंबी आयु के प्रथम 30 वर्ष सच्चे अर्थ में आदमी की आयु रहती है। इस समय शरीर और मन से वह बिल्कुल स्वस्थ और उत्साह से पूर्ण रहता है। उसके बाद 12 वर्ष की आयु–गधे की बची आयु–शुरू होती है। इस समय केवल बोझ ढोने और गालियाँ खाने के अलावा उसे कुछ नहीं मिलता। उसके बाद उसकी कुत्ते की आयु शुरू होती है। इस समय आदमी में वह शक्ति नहीं रहती, परंतु उस पहले जमाने के अधिकार की स्मृति भी नष्ट नहीं होती इसलिए अलग बैठकर दूसरों पर भूँकने के अलावा वह कुछ नहीं कर सकता। आखिर में उसकी वह बंदर की आयु शुरू होती है जिस समय आचार-विचार के साथ-साथ आकार-प्रकार में भी वह बंदर जैसा ही रह जाता है और बच्चों के लिए वह बंदर घुड़की का एक विषय बन जाता है।

आदमी की आयु इस तरह की होती है।

अनुवादक–प्रो. करमरकर


Image: Apes in the Orange Grove
Image Source: WikiArt
Artist: Henri Rousseau
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