वर्तमान चीनी साहित्य
- 1 May, 1953
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- 1 May, 1953
वर्तमान चीनी साहित्य
1890 से चीनी साहित्य का वर्तमान युग शुरू होता है। तब जो वह साहित्य पश्चिमी संस्कृति और साहित्य के संपर्क में आया तो उसमें आधारभूत परिवर्तन होने लगे।
1898 में दो चीनी पंडितों ने एक सुधार-आंदोलन का प्रारंभ किया। इनमें पहला था कांग यू वेई जिसकी रचनाओं में प्रधान थीं–तातुंग शू (दी ग्रेंड कामनवेल्थ) और कुंग त्ज काई चिह काओ (कन्फूशस् चेंन्जेंज इंस्टिट्यूशंस : एक रिसर्चस्टडी) और दूसरा था लियांग चि चाओ। वह महान् और विशद लेखक था जिसने अपने देश के इतिहास और दर्शन की जानकारी के साथ स्वस्थ सचेत शक्तिम साहित्य-रचना की। उसकी प्रधान रचनाएं इतिहासपरक हैं परंतु उसने उच्च कोटि की कविताएँ और निबंध भी लिखे जो अनेक संग्रहों में ‘यिन पिंग शिह वेन त्सी’ के नाम से प्रकाशित हुए। कांग सन् 27 में मरा और लियांग चि चाओ सन् 29 में।
इस सुधार-आंदोलन से कुछ ही पहले चीन में वह क्रांति हुई थी जिसने 1911 में मंचू सम्राटों का अंत कर चीनी प्रजातंत्र की प्रतिष्ठा की। उस क्रांति के विधाता थे डॉ. सुन यात सेन। डॉ. सुन की रचनाओं में प्रधान हैं सान मिन चू यी (तीन लोकतांत्रिक सिद्धांत) और सुन वेन सुएह शुओ (सुन वेन के सिद्धांत)। इस दूसरी पुस्तक में डॉ. सुन ने स्थापित किया कि ‘जानने से अधिक आसान करना है।’
1917 में भाषा संबंधी एक सुधार-आंदोलन का आरंभ डॉ. हू शिह और प्रोफेसर चेन तू सिऊ ने किया। इस आंदोलन का उद्देश्य लोक बोली ‘पाई हुआ’ को शिक्षण और साहित्यिक कृतियों की भाषा बनाना था। आंदोलन की सफलता से वर्तमान चीनी साहित्य में तीन विशिष्ट परिवर्तन हुए 1. व्यक्तिगत निजी शैली का आरंभ; 2. क्लासिक संकेतों और संदर्भों का अंत; और 3. पाश्चात्य सांकेतिक लक्षण की शैली और विराम-चिह्नों के प्रयोग का प्रारंभ।
चीनी साहित्य के इतिहास में 1917 और 1937 के बीच के बीस साल बड़े महत्त्व के रहे हैं। इस युग में एक नया चीन जन्मा और नए शक्तिम लेखकों का एक समुदाय उठ खड़ा हुआ। नए लेखकों ने रूढ़िगत क्लासिकल प्रतिबंधों को तोड़ दिया। साहित्य के पुराने कलेवर को छोड़ उन्होंने नई सरणि, नई शैली, नए रूप (फर्म) का विकास किया। नए विचारों के प्रचार के लिए उन्होंने पत्र-पत्रिकाओं को अपना साधन बनाया। अपने कृतिगत साहित्य को उन्होंने नया पद्य, नया गद्य, नया उपन्यास, नया नाटक, नया इतिहास कहा और उनका वाहन उन्होंने जनता की रोजमर्रा की जबान को बनाया। उनकी कृतियाँ तीन विचारधाराओं में बँट चलीं। उदारवादी, राष्ट्रवादी और साम्यवादी। जिन लेखकों और साहित्यकारों की कृतियों ने चीनी पाठकों पर गहरा प्रभाव डाला उनमें प्रधान हैं–चाऊ शू जेन, क्वो मो रो और हू शिह। चाऊ शू जेन, जो लु सुन नाम से विख्यात हुआ, आधुनिक चीनी साहित्य का पिता है। चीनी पाठकों और लेखकों पर समान रूप से उसकी सत्ता प्रतिष्ठित है। चीनी उसे गोर्की और बर्नाड शा की सम्मिलित मेधा का साहित्यकार मानते हैं। उसमें गोर्की का यथार्थवाद, मानवतावाद और सहृदयता समान रूप में विद्यमान थी। साथ ही उसकी कृतियों में जीवन का व्यंग्य प्रचुर मात्रा में है। उसमें शा की ही भाँति व्यंग्यात्मक रूप से समाज की कुरूपता का भंडाफोड़ किया। उसकी कृतियों में प्रधान ‘आह कू की आत्म कथा’ और चीनी उपन्यास का संक्षिप्त इतिहास है। लू सुन, जिसने आधुनिक चीनी साहित्य के प्राय: सभी अंगों को अपनी कृतियों से संपन्न और प्रभावित किया, सन् 1936 में मरा।
क्वो मो रो आज के चीन का बड़ा प्रतिभावान् और संपन्न साहित्यकार है। उसने दस सुंदर उपन्यास लिखे हैं, आधे दर्जन अभिराम नाटक, कविताओं के पाँच संग्रह, निबंधों की छ: जिल्दें और जर्मन तथा रूसी साहित्य से उसने बारह अनुवाद किये हैं।
इन अनुवादों में गेटे का ‘फास्ट’ और टोल्स्टोय का ‘युद्ध और शांति’ भी हैं। असाधारण चीनी इतिहासकार के रूप में तो वह पहले ही जगत्प्रसिद्ध हो गया था। आज वह चीनी जनतंत्र का शिक्षा मंत्री, सांस्कृतिक विभाग का प्रधान और खोज संस्था एकेदेमिया सिनिका का अध्यक्ष है। क्वो मो रो आज 60 वर्ष का है, चीनी साहित्याकाश का सबसे ज्वलंत नक्षत्र।
हू शिह ने चीनी और अँग्रेजी दोनों में लिखा। वह बड़ा संयत, तर्क-प्रवीण और गंभीर विचारक है। वह निबंधकार, कवि, दार्शनिक और पंडित है। उसकी प्रसिद्ध कृतियाँ प्राचीन चीन की तर्क शैली का विकास, चीनी दर्शन का इतिहास, हू शिह की संगृहीत रचनाएँ और प्रयोग हैं। प्रयोग पाई हुआ में लिखी उसकी कविताओं का संग्रह है । वह क्वो मो रो से उम्र से साल भर बड़ा है। चीन से बाहर के जगत में लिनयुतांग, जो चीनी और अँग्रेजी दोनों में लिखता है, ख्यातिलंध हुआ है। उसकी ख्याति उसकी कृतियों ‘माई कंट्री ऐंड माई पीपुल’ और ‘दि इंपार्टेंस आफ लिविंग’ से हुई। चीनी में उसकी प्रसिद्ध कृतियाँ हैं ‘वोती हुआ’ (मेरे प्रवचन) और ‘ता हुआग ची’ जो उसके निबंधों और अन्य लेखों का संग्रह है। उसकी दो अँग्रेजी पुस्तकें और प्रसिद्ध हैं ‘दि विज़डम ऑफ कनफ्यूशंस’ और ‘दि विज़डम ऑफ चाइना ऐंड इंडिया’। संत्तावन वर्ष का लिन युतांग जो अब अमेरिका और फ्रांस में रहने लगा है, अपनी जन्मभूमि से आज उदासीन है। चीन का उद्दाम सावधि जीवन और सजग साहित्य अब उसके प्रेरक नहीं रहे। पूर्वाकाश का यह नया सूर्य लिन युतांग की मेधा को अब प्रकाश और गर्मी न दे सकेगा। लिन जीवन से दूर चला गया है।
लाओ शेह व्यंग्यात्मक नाटक, उपन्यास और कविताओं का प्रभूत का रचयिता है। उसके विनोद व्यंग्य की तुलना मार्क ट्वेन की शैली से की गई है । उसकी भाषा अत्यंत सरल और अकृत्रिम है। उसकी कहानी ‘रिक्शा ब्वाय’ ने अमेरिका में धूम मचा दी थी।
1937 से चीनी जीवन और साहित्य में एक नया परिवर्तन आया। जापानी जंगबाजों ने चीन पर हमला किया । चीन में शत्रु का जमकर मुकाबला किया। उसके साहित्यकार आक्रमकों के विरुद्ध संघर्ष करने लगे। साहित्य शत्रुओं के प्रतिरोध के रूप में बढ़ा। अनेक साहित्यकारों ने कलम और बंदूक दोनों धारण किए! इस काल उपन्यास, नाटक, कविताएँ, लेख सभी युद्ध-चेतना से लिखे गए। इस दिशा में चेन शाउ-चू का उपन्यास ‘वसंत का गर्जन’ विशेष उल्लेखनीय है। उसमें आक्रांताओं के विरुद्ध किसानों के संगठित संघर्ष की कहानी है। याओ सुएह यिंग का उपन्यास ‘लाल शलजम’ इस प्रकार एक कायर और कमजोर किसान की कहानी प्रस्तुत करता है जिसे स्वदेश की विपत्ति ने निर्भीक योद्धा बना दिया। कविताओं में सबसे लंबी त्सांग केह चिया की ‘पुराने पेड़ की कलियाँ’ है। इस कविता की 5000 पंक्तियों में शांतुंग प्रांत के गोरिला युद्ध और एक नगर की रक्षा में प्रदर्शित शौर्य का बखान है। उस काल के नाटकों में स्वयं क्यो मो रो का ‘चू युवान’ अग्रणी है जिसमें क्लासिकल चीन के कवि-योद्धा चू युवान की कहानी है। त्साओ यू ने अपनी ‘शुक्लवसना महिला’ में उस महिला डॉक्टर का चरित गाया है जिसने घायल सिपाहियों की सेवा की और समाज की कुरीतियों का सजग विरोध किया।
समाजवादी लेखकों में क्यो मो रो आदि का जिक्र अभी आपसे कर चुका हूँ। इन्हीं में सांस्कृतिक विभाग के मंत्री माओ तुन भी है जिसका समर्थ कृतित्व आज के चीनी साहित्य का भंडार निरंतर भरता जा रहा है। वह आज की चीन का यशस्वी उपन्यासकार है। सांस्कृतिक विभाग में उसका सहकारी चाऊ यांग प्रसिद्ध साहित्यालोचक है। आज का चीनी साहित्य जनभावना की धुरी में जुटा है और उसके साहित्यकार अद्यावधि उपेक्षित श्रमिकों, किसानों और सैनिकों का जीवन, विशेषत: स्वयं उनके लिए, अपनी रचनाओं में व्यक्त कर रहे हैं। चीन की नई जनसत्ता परंपरा के अनुकूल ही नए साहित्य का कलेवर बन रहा है।
यहाँ इस पिछले चीनी जीवन के संघर्ष और निर्माण से संबंध रखने वाले जिस प्रगतिशील साहित्य का सृजन हुआ है उसकी ओर संकेत कर देना अनिवार्य होगा। इधर की कुछ कृतियों में निम्नलिखित उल्लेखनीय हैं–खमा फेंग और हूसी जुंग की ‘लू लियांग के वीरों की कहानी’, चाओ शू ली की ‘ली चिया गाँव में परिवर्तन’, युषान चिंग और कुंग चुएह की ‘नए वीरों और वीरांगनाओं की कहानी’, शाओ जू जान की ‘बारूद का खेत’। ये उपन्यास हैं । बहते जीवन की कहानी रूपायित करने वाले उपन्यास। एक और उल्लेखनीय कृतियाँ हैं, हूँ तान फू की ‘अपना दृष्टिकोण विस्तृत करो’, मा चिएन लिंग की ‘प्रतिशोध के रक्ताश्रु’ और ‘गरीबी की घृणा’ चुंग पिंग की ‘अनुपम सेना’ ड्रामा संसद की ‘वांग के चिंग का फौजी दस्ता’, ‘सेना संसद की वीरांगना’, ‘लिऊ हू लाना’। ये उपन्यास और ड्रामा विदेशी और देशी शत्रुओं के विरुद्ध किसानों का संघर्ष निदर्शित करते हैं।
फौजी करिश्मों के नजारे जिन रचनाओं में मिलते हैं वे हैं–उपन्यास और रिपोर्ताज के रूप में लिऊ पाई यू की ‘तीन वीर सैनिक’ और राजनीति कमिस्सर हुआ शान की ‘वीर अक्तूबर’, ली वेन पो की ‘आस्तीन पर खून’, हान ससी लियांग की ‘यिमेंग पहाड़ों का हवाई दस्ता’ और ड्रामा के क्षेत्र में ‘चिउकू पहाड़ों के वीर लड़ाके।’ इनमें चीन जनसेना के वीर-कार्यों का निरूपण है।
किसानों की संघर्ष संबंधी जिन रचनाओं ने ख्याति लाभ की है उनमें विशिष्ट हैं चाओ शू ली की ‘ली यु त्साई के पद’, वाँग ली का ‘उज्ज्वल दिवस’, वाँग हसी चिएन की ‘आफत’ तिंग लिंग का ‘चियांग शान गाँव में दस दिन’। नाटकों में उल्लेखनीय ली चिह हुआ का ‘प्रतिक्रांति के प्रति संघर्ष’ है । जिन नाटकों ने इधर ओप्रा के रूप में अद्भुत लोकप्रियता अर्जित की है उनमें प्रमुख हो चिंग चिह का ‘श्वेत-केशा नारी’ है। इस दिशा में युवान चांग चिंग का ‘लाल पत्ती नदी’ भी बड़ा लोकप्रिय हुआ। उसकी लंबी कविता ‘जाल’ भी उल्लेखनीय है, जैसे उपन्यासों में चाओ शू ली का ‘सियाओ एरहेई की शादी’ हान त्सू का ‘गड़बड़’, कुरा चू एह का ‘एक नारी की आजादी की कहानी’, हुंग लिन का ‘ली सिऊ लान’ और कांग चो का ‘मेरे दो जमींदार’।
इधर इस तेजी से चीन में साहित्य-रचना हुई है कि यह तो मैंने सूची की एक सूची मात्र प्रस्तुत की है। वस्तुत: साहित्य का निर्माण भी वहाँ और राष्ट्रीय निर्माण के अनुपात में ही असाधारण गति से हुआ है और हो रहा है। यह हर्ष की बात है कि साहित्य का सृजन और प्रणयन करते हुए चीनी साहित्यकार अपनी क्लासिकल प्राचीन परंपरा में घनी निष्ठा रखते हैं। ललित कलाओं के साहित्य संघ का अध्यक्ष 61 वर्ष की आयु का सुंदर अभिनेता माई लात फांग है जो ओप्रा के क्षेत्र में संसार में अपना सानी नहीं रखता और आज इस बुढ़ापे में भी अद्भुत नारी-अभिनय करता है। चीनी रंगमंच की संपदा और सेटिंग संसार में बेजोड़ है उसका अगला साहित्य भी उसी के अनुकूल होगा, सहृदय भारतीय ऐसी आशा करता है।
Original Image: Chinese Lantern
Image Source: WikiArt
Artist: Oda Krohg
Image in Public Domain
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