विलियम फॉकनर

विलियम फॉकनर

विलियम फॉकनर के उपन्यास साहित्य में भी हेमिंगवे की तरह जीवनी का बड़ा समावेश है। परंतु अंतर केवल इतना है कि फॉकनर के कल्पित पात्रों में लेखक का जीवन-प्रकाश न होकर उसके परिवार की पिछली पीढ़ियों की झाँकी मिलती है। इसका एक विशेष कारण है। उसका विश्वास है कि हमारे वर्तमान पर देश-काल का बड़ा प्रभाव पड़ता है। केवल प्रभाव ही नहीं, देश-काल, समाज विशेष की रीति-नीति, मान्यताएँ एवं संस्कार बन कर हमसे ऐसे काम कराते हैं जिनका कारण साधारण तौर पर हमारी पकड़ में नहीं आता। अस्तु, ‘सारटोरिस’ और ‘कामसन’ परिवारों की कथा फॉकनर के पुरखों की ही कथा है जिन्होंने उपन्यासों में कल्पित शरीर धारण कर लिया है।

फॉकनर का जन्म 25 सितंबर, 1897 को न्यूअलबानी में हुआ था। जहाँ तक पता चलता है वह एक अच्छा छात्र था, लेकिन शरारती। कहानी कहने की प्रतिभा उसमें बाल्यकाल से ही थी। कथा सुनते-सुनते उसके साथियों को यह पता ही नहीं चलता कि वह सच कह रह है या मनगढ़ंत। वह कुछ सनकी और जिद्दी स्वभाव का था। दसवीं कक्षा से ही उसने स्कूल छोड़ दिया और एक बैंक में नौकर हो गया। छुटपन से ही उसको लेखक बनने की धुन सवार थी। अपने किशोरकाल में ही उसने काव्य-संबंधी पुस्तकें पढ़ीं और स्बिनबर्न तथा उमर खैय्याम की नकल में कविता रचने लगा, पर वह कुछ अच्छी नहीं बनी।

सन् 1918 में जब अमरीका प्रथम महायुद्ध में शामिल हुआ तो फॉकनर ने भी फौज में भरती होना चाहा लेकिन वजन कम होने के कारण उसे नहीं लिया गया। तब वह टोरंटो गया और कैनेडियन एयर फोर्स में भर्ती हो गया और एक लेफ्टीनेंट बनकर फ्रांस चला गया। वहाँ उसका जहाज दो बार गिराया गया जिसके कारण उसको बड़ी चोट आई। सन् 1919-21 में फिर अमरीका लौटकर मिस्सपी विश्वविद्यालय में भर्ती हो गया जहाँ अँग्रेजी, फ्रेंच आदि की शिक्षा पाई, परंतु स्नातक न बन पाया। उसके ये दिन बड़ी कठिनाई में बीते। उसने रंगसाज़ी का काम किया और पोस्ट मास्टरी का भी। परंतु काम ठीक न करने से निकाल दिया गया। उसके बाद वह न्यू आरलिंस चला गया जहाँ उसकी भेंट शेरवुड एंडरसन से हुई जिसने उसे लिखने की प्रेरणा दी और उसका पहला उपन्यास ‘सोलजर्स पे’ निकला। उन्हीं दिनों वह डबलडीलर के संपर्क में आया और उसमें पहली बार एक कविता छपी। ‘सोलजर्स पे’ में एक ऐसे घायल सैनिक की कथा है जिसको मरा समझ लिया गया है। इसमें तथाकथित मृतक के संबंधियों की पराजय की प्रतिक्रिया अंकित है। यह उपन्यास 1926 में निकला। इसका तत्काल स्वागत हुआ। इसके बाद उसने ‘मोसकिटो’ पर काम करना शुरू किया। लेकिन इन दोनों के छपने से पहले ही वह यूरोप चला गया जहाँ वह 1925 तक रहा। वहाँ से लौटने पर उसने बड़ी कठिनता से जीवन बिताया। उसे तंगदस्ती में बढ़ई का काम करना पड़ा, खेती की, मछलियाँ पकड़ीं और प्रूफरीडरी भी की, प्रशंसा तो मिल रही थी, मगर पैसा न था। 1927 में ‘मोसकिटो’ के छपने पर भी कोई व्यावसायिक सफलता न मिली। मगर अब कलम मँजती चली गई। कुछ लिखने का शौक बढ़ा और कलाकार फॉकनर को एक दिशा मिली। अब वह आत्मपरितोष के लिए कोई पुस्तक लिखना चाहता था जिसमें उसकी प्रतिभा का चमत्कार हो। ‘द साउंड एंड फ्यूरी’ ऐसा ही एक उपन्यास है जिसने अमरीकी साहित्य में एक नई प्रतिभा को प्रकाशित किया। इसमें लेखक वस्तुगत दृष्टि को विकास की चार अवस्थाओं से गुजारता है जिसकी कथा को चार व्यक्तियों ने कहा है। उनमें से दो पुरुष पात्र एक ही नाम के हैं जिनका पता अंत में चलता है। इसमें पात्रों को यथार्थ रूप में पेश किया है जो पाठक की सहानुभूति को अपने साथ ले जाते हैं। इसमें लेखक मानव के अज्ञान, मिथ्या तर्क एवं महानता के स्थायी क्षेत्रों को खोजने में लगा है। इस उपन्यास का निरादर तो नहीं हुआ, परंतु उत्साह कम ही मिला।

फॉकनर कभी हतोत्साह नहीं हुआ। अब उसने ‘सारटोरिस’ पर काम करना शुरू कर दिया जो 1929 में छपा। उसी वर्ष ‘एस्टेला ओल्डहम’ से विवाह भी कर लिया। उसके साथ दो बच्चे भी थे। यह विवाह दोनों की इच्छा के विरुद्ध ही हुआ था। एक तो कोई आमदनी पहले नहीं थी फिर विवाह कर लिया था। रोटी चलनी मुश्किल हो गई थी। इस संकट से बचने के लिए उसे एक कारखाने की भट्ठी पर रात को काम करना पड़ा। इसको उसने बड़ी तत्परता से निभाया और साथ-साथ ‘एज़ आई ले डाईंग’ लिख डाला। इस उपन्यास में मानव की उस सहनशक्ति का चित्रण है जो जीवन के समस्त अभिशापों, पतन और हैवानियत पर भी टिकी रहती है। इसमें नि:स्वार्थ प्रेम और उत्तरदायित्व है जिसको वह सारी कठिनाइयाँ झेल कर भी पूरा करता है। अब फॉकनर को रुपए कमाने की धुन थी। उसने बाजार की माँग को समझा और तीन सप्ताह में ‘सेंचुअरी’ (1930) जैसा उपन्यास लिख डाला। इसमें एक लड़की की ऐंद्रिय -लोलुपता की कहानी है जो बड़ी निर्दयता से कही गई है। इसमें शराब, बलात्कार, कुंठा तथा यौन निर्दयता के चित्र हैं। यह समसामयिक पतित सामाजिक मूल्यों के उद्घाटन में समर्थ है। यही इसका उद्देश्य है। अब फॉकनर की चाँदी कटी। यौन चित्रों की प्रधानता के कारण इसकी खूब बिक्री हुई। हॉलीवुड ने उपन्यास को खरीदा और चित्र बनने लगा। वे फिल्मी लेखक बन गए। पुरानी रद्दी में पड़ी कहानियाँ भी छपने लगीं। धन का अभाव दूर हो गया। इस धन से उसने अपने पुराने मकान की मरम्मत कराई। अपना हवाई जहाज़ खरीदा और भाई की शिक्षा में पैसे से मदद दी।

यश और अर्थ दोनों की प्राप्ति से उसकी कलम और तेज़ चलने लगी। 1931 में ‘सोलजर्स पे’ के रचना-काल की कहानियाँ ‘दीज़ थरटीन’ के संग्रह में छपीं। इनमें से ‘दैट ईवनिंग सन’ और ‘ए रोज़ फार एमीली’ उसकी श्रेष्ठ कहानियाँ हैं। दूसरे वर्ष 1932 में ‘लाईट इन अगस्ट’ छपा। इसमें प्रोटेस्टेंट धर्म के खिलाफ व्यंग्य किया गया है। एक नीग्रो स्त्री जो अपनी जाति के क्रोध की प्रतीक है आत्मरक्षा के बहाने किसी व्यक्ति का कत्ल कर देती है। वह इस निर्दयता को एक नया अर्थ देकर उसे ईश्वर की इच्छा पर किए जाने वाले कर्म की दुहाई देती है। यह वास्तव में तथाकथित धर्म की उन अच्छाइयों पर आक्षेप है जो अपनी विकृति में पाप से अधिक हो गए हैं। इसके बाद 1934 में ‘ए ग्रीन बो’ कविता-संग्रह और ‘डॉक्टर मारटिनो’ दूसरा कहानी-संग्रह छपा। यद्यपि यह कहानी-संग्रह पहले जैसा नहीं है, परंतु इसमें ‘वाश’, ‘स्मोक’ और ‘ओनर’ कुछ कहानियाँ हैं। दूसरे वर्ष ‘पाइलोन’ (1935) छपा। इसमें आधुनिक त्रिकोणात्मक प्रेम की कथा है। एक कामुक लड़की एक से प्रेम करती है, फिर दूसरे से फँस जाती है। गर्भ रह जाने पर लाटरी डाल कर एक को चुनती है। परंतु त्रिकोण फिर भी चलता रहता है जब तक कि उसका तथाकथित पति, पत्नी के लिए धन जुटाने में अपने प्राण नहीं गँवा देता। इसके बाद ‘आबसालम आबसालम’ (1936) छपा। इसमें व्यक्ति के आत्मघाती भावों का प्रदर्शन है। ‘द अनवेंक्विश्ड’ उसका अगला उपन्यास 1938 में प्रकाशित हुआ। इसमें दक्षिण प्रदेश की गृह-युद्ध काल की कहानी है। सारटोरिस परिवार के चरित्र-विकास की झाँकी इसमें मिलती है। 1939 में नवीन शैली पर लिखा गया उपन्यास ‘द वाइल्ड पाम्स’ प्रकाशित हुआ। इसमें दो कहानियाँ साथ-साथ कही गई हैं। पहली में एक औरत के घर से भाग जाने और हमल गिराने की कथा है और दूसरे में एक अपराधी है जो बाढ़ में एक स्त्री को बचा लाता है और अंत में स्वयं मर जाता है। इसके बाद दूसरा उपन्यास ‘द हेमलेट’ लिखा। इसमें ‘जेफरसन’ के आसपास की कच्ची धरती का आंचलिक परिवेश अंकित है। सन् 1942 में ‘गो डाऊन मोसिस’ का कथा-संग्रह छपा जिसकी ‘द बीयर’, ‘डेल्टा ओटम’ आदि कहानियाँ प्रकृति के अन्यन्य प्रतीकों को पेश करती हैं। इसके बाद दो उपन्यास ‘इंट्रडर इन द डस्ट’ और ‘रिक्यम फार ए नन’ और ‘नाइट्स गेंबिट’ कहानी-संग्रह छपे। परंतु इनमें से कोई भी फॉकनर के गंभीर अध्ययन को पेश नहीं करते। इनमें पिछली रचनाओं की ही पुनरावृत्ति है। हाँ, वह अपने अंतिम उपन्यास ‘द फेबिल’ में सलीब की कथा को आधुनिक वातावरण में पेश करता है। इसको उसने नौ वर्षों में लिखा, फिर भी कथा में सर्वत्र अन्योक्ति का निर्वाह नहीं हुआ है। हाँ, अंशों में यह उनकी कला की श्रेष्ठता को प्रदर्शित करती है।

जब से फॉकनर की फिल्मों में पूछताछ होने लगी, वह ऑक्सफोर्ड के पास ही एक फार्म लेकर रहने लगा। वहाँ वह स्वयं भी काम करता था। वह सुबह के समय लिखता था। लिखने का भी उसका अपना ढंग था। वह कागज की दाईं ओर लिखता और बाईं तरफ सुधार के लिये जगह छोड़ देता था। पर जो वह लिखता वह बड़ी मुश्किल से पढ़ा जाता था। शाम का समय उसका शिकार खेलने, मछली पकड़ने और शराब पीने में बीतता था। लोगों से मिलना-जुलना उसको कतई पसंद नहीं था, शायद इसलिए कि आलोचकों ने उसे बुरी तरह लिया था। बाद में जब उसको मान और यश मिलने लगा तो वह तटस्थ हो गया, भले ही उसे युग-निर्माता कहा जाने लगा हो। 1946 में नोबेल पुरस्कार लेने के लिये भी स्टाकहोम वह इसलिए गया कि उसे अपनी लड़की जिल को पेरिस घुमाने का शौक हो आया था।

फॉकनर ने अपने रचना-काल में अनुभव किया कि वह जो साहित्य को देना चाहता था, न दे पाया। उसका भाव आंचलिक अमरीकी जीवन को प्रकाश में लाना था। इससे अधिक उसने अपनी रचनाओं को एक समीक्षक की दृष्टि से नहीं देखा और न ही कभी अपनी शैली में सुधार की बात सोची। इसीलिए उसकी रचनाओं को समझने के लिये बराबर पढ़ना पड़ता है। उसका कहना था कि यदि लेखक के अंदर कहानी होती है तो वह जरूर किसी-न-किसी रूप में बाहर आती ही है।

इन दोषों के बावजूद वह हमारे युग का एक महान उपन्यासकार है। उसकी सफलता ही नहीं, असफलता भी साहित्यिक योगदान की सूचक है। काल के दोषों, दुराचारों एवं मानव की निरंकुशता का उसने सामना किया और उनमें से मानवीय गुणों के मोती ही वह निकाल कर दुनिया के सामने लाया। उसका समस्त साहित्य मानवीय प्यार, दया और साहस की दुहाई देता है। और ये ही तत्त्व फॉकनर को जीवित रखने वाले हैं। निम्नस्तरीय मानवरूपों को चित्रित करने में उसे छोटा बालजाक कहा जा सकता है।


Image Courtesy: LOKATMA Folk Art Boutique
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