प्रेम मार्ग से ज्ञान मार्ग की ओर

प्रेम मार्ग से ज्ञान मार्ग की ओर

कन्हैयालाल जी उर्फ़ कन्नू बाबू आज कल प्रेमगुरु बने घूम रहे हैं। वैसे ये उनका पार्ट टाइम काम है। फुल टाइम काम तो अखबार में खबरें लिखना है। एक पत्नी और एक बच्चे के साथ खुशहाल जीवन जीते जरूर हैं पर प्रेम के मामले में उनके फंडे एकदम क्लियर हैं। उनके अनुसार प्रेम दिमाग से करने की चीज होती है…बेवकूफ होते हैं वे लोग जो प्रेम में दिल का इस्तेमाल करते हैं। उन लोगों को वो खुल्लमखुल्ला गाली देते हैं, जो प्रेम में पागल हो अपने दिमाग के ताले को बंद कर देते हैं। वे तो यहाँ तक समझाते कि भाई महँगाई का जमाना है। प्रेम भले ही अपनी मर्जी की लड़की से करो पर शादी माँ बाप की मर्जी से ही करना ताकि रेवेन्यु लॉस न झेलना पड़े, वरना एक एक सामान जोड़ने में ही जिंदगी निकल जाएगी…प्रेम क्या खाक करोगे।

असल में कन्नू बाबू भी जबर्दस्त इश्क में पड़े थे। वो भी उस उम्र से जब लोग किताबों में सिर मार रहे होते हैं और दोस्तों संग मटरगश्ती करते हैं…कन्नू जी गाँव के गरीब घर के लड़के थे और दसवीं के बाद ही शहर आना पड़ा पढ़ने के लिए…एक छोटी सी किराये की कुठरिया में अपना बसेरा बनाया और लग गए पढ़ाई में। मकान मालिक की बिटिया जो नवमी में पढ़ती थी अक्सर उनके पास पढ़ाई के लिए आने लगी और शुरू हुआ बातों का सिलसिला। शहर में नए थे और दोस्त अभी बने नहीं थे सो कन्नू बाबू को कुसुम के रूप में मित्र मिल गई थी।

कन्नू महाराज ठहरे ‘गुनाहों के देवता’ के चंदर सो हृदय की गहराइयों से प्रेम में डूबने लगे…कभी चाँद से बातें होती, कभी तारे गिनते…वे प्लेटोनिक लव में विश्वास करते थे पर कुसुम रानी तेज थी और हिंदी फिल्मों की दीवानी सो जल्द ही उन्होंने हाथों में हाथ ले कन्नू महाराज को प्रेम का पाठ पढ़ाना शुरू कर दिया। कन्नू बाबू ने पवित्र प्रेम का मतलब लाख समझाया, कुसुम रानी समझने के बजाय भड़क जाती। एक दिन उनकी मर्दानगी को ललकार बैठी। फिर क्या था कन्नू बाबू ने बात दिल पर ले ली और पूरे जोश में शुरू हो गए। अभी मामला गरमा ही रहा था कि लड़की का भाई आ धमका…और इतनी जोर से चिल्लाया कि लड़का लड़की दोनों आसमान से नीचे आकर गिरे…कन्नू बाबू शर्म से गर्दन झुकाए खड़े हो गए…वे अभी कुछ समझ पाते कि अचानक कुसुम रानी ने बुक्का फाड़ कर रोना शुरू कर दिया और जो बोली उसके बाद तो कन्नू बाबू शर्म से पानी पानी हो गए… ‘हमारी कोई गलती नहीं है बापू कसम से हम तो गणित का सवाल पूछने आए थे…पढ़ाते-पढ़ाते अचानक पता नहीं क्या हुआ…ये हमारे साथ जोर जबरदस्ती करने लगे…डर के मारे हमारी आवाज भी नहीं निकल पाई…’ लड़की ने रोते रोते अपनी कहानी सुनाई। कुसुम रानी ने अचानक पूरी बाजी पलट दी थी…

साले जिस थाली में खाता है उसी में छेद करता है, हम तुझे भले घर का समझते थे और तू इतना घटिया निकला कहकर लड़की के बाप ने जूतों की बरसात शुरू कर दी। ‘बापू मैं पुलिस बुलाकर लाता हूँ…इसकी अक्ल वे ही ठिकाने लगाएँगे…’ अबके भाई भड़का।

‘अरे पागल भयो हा…बदनामी तो अपनी छोरी ई है जाएगी। पुलिस को कोई काम ना हैं यहाँ’ अबके माँ बोली।

‘हाँ भाई तू अभी घर खाली कर और निकल यहाँ से…’ पिता बोले।

‘ना बापू जा के माँ बाप को तो बुला ही लो जाकी अक्ल तो ठिकाने लगानी परेगी’ भाई का गुस्सा अब भी सातवें आसमान पर था।

बेचारे कन्हैया लाल साष्टांग लेट गए ‘मुझे माफ़ कर दो। मेरे बापू को मत बुलाओ…वे मर जाएँगे…अब मैं आपके घर के और कुसुम के आस पास तक नहीं आऊँगा…प्लीज मुझे माफ़ कर दो…’ अब वो फूट फूट कर रो रहा था।

आखिरकार वे लोग मान गए, उसी वक्त कुसुम रानी ने उन्हें राखी बाँधी और अगले दिन वे उस घर से रवाना हो दूसरी जगह चले गए।

कुसुम के दिए धोखे को भुलाने के लिए जोर शोर से पढ़ाई में लग गए। उनका दिल तो टूट ही चुका था, उन्हीं दिनों उनकी जिंदगी में एक नई कन्या का पदार्पण हुआ। उस कन्या ने उनके दिल के घावों पर मरहम का काम किया। वे पिछली बेइज्जती भूल शीला के प्रेम में पड़ गए। शीला उन्हीं के कॉलेज में पढ़ती थी सो रोज मिलना जुलना होता। उन्हें लगता सच्चा प्रेम तो यही है। शीला और वे शादी के सपने देखने लगे। बच्चों के नाम सोचे जाने लगे। कन्नू बाबू ने अपने माँ-बाप को भी बता दिया था कि उनके लिए बहु खोज ली गई है। कुल मिलाकर मामला चौकस था।

समय बीतता रहा। कन्नू बाबू ने आगे पढ़ाई के लिए बड़े शहर की ओर रुख करने की तैयारी शुरू कर दी थी…

‘हम पढ़ाई पूरी करके जल्द ही नौकरी खोज लेंगे फिर तुम्हें धूमधाम से ब्याह कर ले जाएँगे’ चलते वक्त हीरो ने अपनी हिरोइन को बाहों में लेकर कहा।

हम आपका यहीं इंतजार करेंगे स्वामी, हिरोइन ने भी प्रेम पर मोहर लगाई।

जाने से पहले शीला को अपने घर वालों से मिलवाना भी नहीं भूले। माँ पिता ने उनकी पसंद पर मुहर लगा दी थी। शीला के माता पिता से भी वे मिल लिए थे, सो अब बेफिक्र थे। कन्हैया शहर में पढ़ाई के साथ ट्यूशन भी पढ़ाने लगे। अभी छह महीने ही हुए थे कि उनके मित्र रमेश ने उन्हें फोन किया, ‘कन्नू यार आज हमने भौजाई को पिक्चर हॉल में देखा।’

‘हाँ तो का हुआ देखने गई होगी, उसमें का बुराई है।’ कन्नू बाबू बोले।

‘ना उसमें तो कोई बुराई ना है पर बू काई छोरा के संग हती।’ रमेश अटक अटक कर बोला। कन्नू बाबू तो सच्चा इश्क करते थे और इश्क मतलब भरोसा, सो उन्होंने रमेश को समझा दिया कि कोई भाई वाई होगा चिंता ना करो। तुम्हारी भौजाई हमें जान से ज्यादा चाहती हैं। उसने हमसे शादी का वादा किया है।

कन्नू महाराज अपनी पढ़ाई और ट्यूशन आदि में व्यस्त रहे। चार छह दिन बाद फिर रमेश का फोन आया ‘भैया हम पता कर लिए हैं वो भौजाई का नया आशिक है। दोनों हाथ में हाथ डाले घूम रहे थे…एक और बात बताएँ भैया…’ रमेश थोड़ा धीरे से बोला।

‘हाँ हाँ बोल ना क्या बात है।’ कन्नू ने पूछा।

‘वो लड़का खूब अमीर लगता है। गाड़ी भी है उसके पास।’ रमेश अटक-अटक कर बोला।

‘तू कहना क्या चाहता है, हमारी शीला हमारा प्रेम भुला कर पैसे पर फिसल गई।’ रमेश ने चुपचाप फोन काट दिया।

इस बार कन्हैया लाल को टेंशन हुई। उन्होंने तुरंत शीला को फोन मिलाया और प्यार से उनका हाल पूछा, फिर बोले ‘क्या बात है आज कल तो खूब घूमना फिरना हो रहा है। हमें भुलाने का प्रयास तो नहीं हो रहा।’

सुनते ही शीला जी भड़क गई। ‘तुम्हारे पास तो बखत नहीं है हम क्या तुम्हारे नाम की माला जपते साध्वी बन जाएँ। कब तक बैठ रहें। रही घूमने की बात तो का हम घर से निकल भी नहीं सकते?’

‘अरे भड़क काहे रही हो? हमने कब कहा साध्वी बनो। कौन था जिसके साथ घूम रही थी?’ कन्हैया जी ने पूछा।

‘अच्छा अब समझ आया किसी ने आग लगाई है हमारे खिलाफ…हमारे भैया है बू जिनके खिलाफ कान भरे जा रहे हैं…कीड़े पड़ेंगे उसको जो तुम्हारे कान भर रहा है…’ कहकर शीला रोने लगी और फोन काट दिया।

चार पाँच दिन बाद फिर शीला जी का फोन आया। ‘हमारे बाबा हमारी शादी करना चाहते हैं जल्दी ही, लड़का देख रहे हैं।’

‘पर क्यों हम तो उन्हें पसंद थे ना फिर अचानक क्या हुआ? हमारे बाबा से बात कर ले। वे तैयार हैं और अब तो हमारी पढ़ाई भी पूरी हो जाएगी। जल्द ही बढ़िया नौकरी पकड़ लेंगे।’ कन्हैया जी ने कुसुम को प्यार से कहा।

‘बू कह रहे थे तुम्हारे यहाँ दो फूटी कोठरी ही तो हैं। कुछ जमीन जायदाद नहीं है, और कौन सी दो चार लाख की नौकरी मिल जाएगी तुरंत ही। वे नहीं ब्याहेंगे तुम्हारे साथ।’ कुसुम ने दो टूक जवाब पकड़ा दिया।

‘कह क्यों नहीं देती कि तुम्हारा मन बदल गया है। रईस लड़का जो खोज लिया है तुमने अपने लिए, तुम ससुरी लड़कियाँ होती ही मतलबी हो। हम ही पगला गए थे सो भरोसा कर बैठे…’ कन्नू बाबू भड़क गए थे उस दिन और उसी वक्त कसम खाई अब जिंदगी भर किसी लड़की से प्यार नहीं करेंगे।

प्यार में हारा हुआ महसूस कर रहे थे। कुछ दिन बाद खबर मिली कि कुसुम का ब्याह हो गया और उसी लड़के के साथ जिसे वो अपना भाई बता रही थी। उस दिन तो कन्हैया का दिल ही टूट गया था, खूब जी भर के रोये।

वो खुद को सँभाल पाते तब तक एक बड़ी घटना घटित हो गई, जिसने उन्हें अंदर तक हिला दिया। उनके रूम मेट सुधीर ने एक लड़की के प्रेम में धोखा खाकर आत्महत्या कर ली। सुधीर भी उनकी तरह गरीब घर से था ये लड़की जानती थी फिर भी तीन साल से उसके साथ प्रेम कर रही थी। जैसे ही शादी करने की बात आई उसकी गरीबी का वास्ता दे किसी बड़े घर में ब्याह कर चली गई। रमेश इस सदमे को बर्दाश्त नहीं कर पाया और सीधा जाकर ट्रेन के नीचे लेट गया। उसके शरीर के टुकड़े समेटने कन्नू और अन्य मित्र गए थे। जब सुधीर के शरीर के टुकड़ों को लेकर उसके घर पहुँचे, सुधीर की बहन सदमे में कोमा में चली गई। पिता मानो पागल हो गए थे। जवान बेटे के टुकड़े देख माँ दीवारों पर सिर पटक रही थी। उन सबमें उसे अपने माँ बाप और बहन नजर आ रहे थे। उसी वक्त निर्णय लिया कि अपने लिए नहीं अपने परिवार के लिए ही जीना है। अब उस दिन से वे प्रेक्टिकल इनसान हो गए।

कुछ साल में बढ़िया नौकरी, सुंदर पत्नी सब हो गए उनके पास। बस नहीं होता तो वो है प्रेम। अब वे सब कुछ जिम्मेदारी के रूप में सँभालते हैं।

जहाँ भी जवान लड़के दिखते हैं वे अपना प्रेम का ज्ञान उड़ेल डालते हैं–‘देखो भाई प्रेम करना बुरी बात नहीं है पर प्रेम में अपने ज्ञान चक्षु खुले रखो, ताकि कोई आपका फायदा न उठा सके। और एक बात जिससे प्रेम करो उससे विवाह के सपने तो कतई न देखो। प्रेमिका तो चाँद तारों की सैर कराने के लिए होती है। वही तो होती है जिसके साथ हम असंभव से सपने देख आनंदित होते हैं। कितना अशोभनीय होगा जिसको बोला ‘ये पाँव जमीं पर न रखना नहीं तो मैले हो जाएँगे’। उन्हीं पाँवों की फटी बिवाई देखनी पड़े। जिसके नर्म हाथों को लिए चूमते थे। घर के झाड़ू, पोंछे और बर्तन घिसबा कर उसी के खुरदरे हाथों से दूर भागना पड़े। ना जी प्रेमिका तो सदा खुबसूरत से सपने के रूप में दिल में बसी रहे बस, और ताउम्र उसके न मिलने की कसक बनी रहे। यदि ऐसा न होता तो कृष्ण भगवान ने हजारों शादी कर डाली तो राधा को पत्नी न बना लेते! तो भाई लोगो प्रेम में कृष्ण बनो और पत्नी और प्रेमिका दोनों को अलग रखो।’

ये ज्ञान वे सिर्फ बाँटते ही नहीं इस पर बाकायदा अमल भी करते हैं। ऐसा कतई नहीं था कि फिर उनकी जिंदगी में लड़कियाँ नहीं आईं। लव तो अब भी होता है बस अब प्लेटोनिक लव नहीं होता बल्कि लव तो अब उनकी आदत बन चुकी है। वे खुद को भँवरा समझ अलग अलग फूलों पर मँडराते हैं। प्रेम अब उनके लिए किसी प्रोजेक्ट से कम नहीं। बस टारगेट पूरा करो और नए प्रोजेक्ट पर काम शुरू। उनका प्रेम अब ज्ञानमार्गी हो चुका है। उनके ज्ञान चक्षु पूरी तरह खुल चुके हैं। यानी दिमाग के दरवाजे खुले रहते हैं और दिल के बंद।


Image: Babu Romancing Bibi – Kalighat Painting
Image Courtesy: LOKATMA Folk Art Boutique
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