साहित्य प्रेमी साँप
- 1 September, 1950
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- 1 September, 1950
साहित्य प्रेमी साँप
उस दिन हिंदी के प्रसिद्ध कवि तथा नाटककार डॉ. राजकुमार वर्मा एक बहुत जरूरी कागज अपनी फाइल में ढूँढ़ रहे थे तो लिफाफे में उनकी एक चमकदार करैत साँप से भेंट हो गई। उस साँप से अवश्य ही किसी ने डॉ. वर्मा की सरस कविताओं की चर्चा की होगी। यों भला डॉ. साहब क्यों उसे कभी साहित्यिक रसास्वादन कराते सो बेचारा फाइलों के भीतर लिफाफे में इत्मीनाम से बैठा रसपान कर रहा था।
परंतु डॉ. वर्मा ने जब इस नए काव्यप्रेमी को देखा तो उसके स्वागत-सत्कार की जगह उसे जूतों से पीटा। कवि द्वारा घर पर अतिथि का यह अपमान कहाँ तक उचित है? वर्मा जी ने उस साँप की सरस भावनाओं की कद्र भी नहीं की। लिफाफे से निकाल कर दो चार बातें भी नहीं की और अतिथि लिफाफे के भीतर ही थे कि उनपर जूते पड़ने लगे। बेचारे अतिथि विरोध प्रदर्शन भी न कर सके, आने का कारण भी न बता सके और जब बहुत हिम्मत करके बाहर सिर निकाला तो सिर पर जो जूते पड़े वह प्राण घातक सिद्ध हुए।
और तो कुछ नहीं, बेचारे साहित्यिक अपनी अकड़ और क्रोध तथा स्वाभिमान के लिए यों ही बदनाम हैं, परंतु बेचारे अतिथि ने स्वर्गलोक (या जिस लोक में उन्हें स्थान मिला हो) में जाकर वर्मा जी के व्यवहार को जाने किस रूप में बखाना हो! इससे हिंदी के साहित्यिकों के व्यवहार को लेकर दूसरे लोक में बदनामी होने की आशंका है।
शायद यह हिंदी के लिए भी बुरा प्रचार हो और विरोधी भाषा के समर्थकों को इससे कुछ शक्ति मिले।
Image: The Snake Charmers Bombay
Image Source: WikiArt
Artist: Edwin Lord Weeks
Image in Public Domain