सेठ जी ने शेर पाला है!
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- 1 September, 1950
सेठ जी ने शेर पाला है!
हिंदी साहित्य सम्मेलन के सभापति (भूतपूर्व) श्री सेठ गोविंद दास अपनी दो दर्जन पुस्तकों की रचना, राष्ट्रीय सेवा कार्य और जीवहत्या विरोधी आंदोलन के लिए काफी यश कमा चुके हैं। हिंदी नाटक साहित्य में उनका एक स्थान सभी मानते हैं।
इन्हीं नाटककार सेठ जी का एक समाचार मिला है कि आपने जबलपुर में अपने राजप्रासाद (राजा गोकुलदास पैलेस) में एक शेर का बच्चा पाला है। बधाई। पिछले दिनों जब ‘नया हिंद’ में सेठ जी का नाटक ‘शेरशाह’ धारावाहिक रूप से प्रकाशित हो रहा था, तभी एक मसखरे साहित्यिक बंधु ने हँसी में कहा था–“यह शेरशाह कुछ कर दिखाएगा।”
और आज की सूचना से ज्ञात हुआ कि शेरशाह के लेखक ने, जो खुद जबलपुर का शेर है, शेर पाला है। यह कोई अनहोनी घटना नहीं। पर एक ही म्यान में दो तलवारें! एक ही ‘पैलेस’ में दो शेर!
और इस समाचार को भूला सा जा रहा था कि इधर जबलपुर के प्रसिद्ध साप्ताहिक ‘प्रहरी’ ने लगातार कुछ अंकों में इस ‘शेर’ का महत्त्व बढ़ाया है। सेठ गोविंददास अखिल भारतीय गोरक्षा सम्मेलन के सभापति हैं। जीव हत्या के परम विरोधी हैं। (सेठ जमनालाल बजाज की गद्दी!) परंतु बात कुछ समझ में नहीं आती कि शेर के भोजन के लिए प्रतिदिन तीन सेर गोश्त जो ‘पैलेस’ में पहुँचाया जाता है उससे जीव हत्या का कोई सीधा संबंध है या नहीं?
हाँ, एक सूचना और मिली है। प्रयाग के एक साहित्य प्रेमी सज्जन ने यह समाचार सुनकर बताया कि उन्होंने तो बहुत पहले से नेवला पाल रखा है और अगर सम्मेलन के सभापति हो गए होते तो शेर पालना क्या वह चिड़िया-घर संगृहीत कर लेते।
Image Source: Wikimedia Commons
Artist: Ustad Mansur
Image in Public Domain