वृद्ध बेनीपुरी जी!

वृद्ध बेनीपुरी जी!

हाँ, बेनीपुरी जी, जिनकी जवानी, स्फूर्ति और मस्ती अजर-अमर कही जाती थी–वे भी बूढ़े होने लगे हैं! वृद्धावस्था की एक सीढ़ी अचानक वे चढ़ गए हैं।

उस दिन हिंदी साहित्य सम्मेलन की किसी सभा में बेनीपुरी जी प्रयाग आए थे। दिनभर सभा में बहुत बोलना पड़ा होगा और श्रीमुख में दाँतों को जिह्वादेवी के कई धक्कों को सहना पड़ा होगा कि शायद दाँतों की जड़ हिल गई थी। एक रिक्शे पर आप चले जा रहे थे। एक धक्का लगा, मुँह पर हाथ रखा और एक दाँत बाहर!

देखते ही लगा कि कलाकार का यौवन फड़-फड़ कर उड़ गया और भाई बुढ़ापा बगल में विराज गए। बेनीपुरी के शरीर में क्षणिक कँपकँपी आई। दाँत को कसकर मुट्ठी में बाँध लिया–पचास वर्ष के साथी! नहीं भाग सकते तुम! कम से कम किसी सुंदर स्थान पर तुम्हें त्यागा जाएगा। पर दाँत को यह पसंद न आया। उसने खुद माया-मोह का बंधन काटा और चुपके से हाथ से फिसल गया। पर बता गया कि कलाकार सावधान! बत्तीसी की शक्ति घट रही है।


Image: Cartoon for the frieze of the Villa Stoclet in Brussels right part of the tree of life
Image Source: WikiArt
Artist: Gustav Klimt
Image in Public Domain

ओंकार नाथ शरद द्वारा भी