डिजिटल सास

डिजिटल सास

रिश्तों के परिदृश्य में अगर करीब से देखा जाए तो वाकई बदलाव हो गए हैं। सच तो यह है कि अब स्त्री ने असर्ट करना शुरू कर दिया है। जितना दिमाग स्त्री का चल सकता है पुरुष का दिमाग तो जा ही नहीं सकता वहाँ तक। यह खुद के अनुभव से बता रही हूँ जनाब! सोशल साइटों पर ढेरों उदाहरण हैं इसके। हर तरफ स्त्री आदर्श बनने की होड़ में लगी हुई हैं–आदर्श माँ, बहन, बेटी, बहू, दोस्त, सास, पत्नी व प्रेमिका। मेरी नजर में तो सबसे अनूठा रिश्ता होता है सास और बहू का। इस रिश्ते में आदर्श बनने की प्रतियोगिता चलती ही रहती है लेकिन विजयी शायद ही कोई बन पाए। हमारे बिहार में तो इस प्रतियोगिता का भरपूर आनंद लिया जा सकता है।

समाज में महिलाओं की कितनी तरक्की हो रही है। यह मदर इन लॉ और डॉटर इन लॉ की फेसबुक स्टेटस देखकर ही अंदाजा लगाया जा सकता है। सासू माँ की प्रसन्नता चरम सीमा पर होती है जब कोई दुकानदार उनकी बहू को देखकर बेटी की संज्ञा देता है। क्या! अहा, दृश्य होता है! उसे बयाँ करना मुश्किल है। केवल अनुभव किया जा सकता है। हमारे यहाँ आदर्श सास आप तभी बन पाएँगी जब कुछ जुमलों को ज़बानी याद कर वक्त-बेवक्त दुहराएँगी। पहला जुमला मेरे हाथ में यश नहीं है और दूसरा मैं किसी के मामले में इंटरफेयर नहीं करती। ऐसी ही आदर्श व्यक्तित्व की धनी है मिसेज दानी। इतना तो तय है कि मिसेज सरिता दानी को अपने नाम के साथ विरोधाभास लेकर जीना पड़ रहा है। हमारी संस्था की महिला मंडल की अध्यक्षा है। महिलाओं के न्याय और अधिकार की बातें ही मंच पर करती हैं। बातें वही रहती हैं, हफ्ते भर पहले खरीदी सब्जियों की तरह बासी लेकिन परिधान नया और डीपी में लगाने के लिए स्टेटस नया। एकदम अपडेट स्त्री-विमर्श के बारे में बातें करती हैं भाई!

मिसेज दानी भी आदर्श बहू की प्रतियोगिता में सफल होने की जी-तोड़ कोशिश में है। सहज भाव से सास की हर दिन भरपूर निंदा और धिक्कार-धिक्कार की दुहाई देती है, लेकिन मोबाइल पर सासू माँ का कॉल आते ही उन्हें सब स्वीकार है! स्वीकार है! स्वीकार है!…

स्त्री माया है सच ही कहा गया है। मिसेज दानी के लकी होने की परिभाषा क्या है? यह उस दिन समझ में आया जब नई सदस्या जो नवविवाहिता थी, जिसने पहले दिन ही अपने परिचय में कहा–‘मेरी सास नहीं है केवल फादर इन लॉ हैं।’ इस बात पर चहककर मिसेज दानी ने कहा–‘हॉउ लकी यू आर डियर।’ सब ने जोरदार तालियों से स्वागत किया। मिसेज रेखा जो नई-नई सास बनी थी थोड़ी मायूस थी। पहले मिसेज दानी की तरह वे भी बहुत चहकती थीं। सब वक्त-वक्त की बात है। यह जुमला तो सबने सुना रखा है कि एक पुरुष की तरक्की के पीछे महिला का हाथ होता है, ठीक उसी तरह एक स्त्री की सफलता में बाधक स्त्री ही होती है। अपवाद और

अफवाहों से सावधान!

सावधानी हटी, दुर्घटना घटी…।

जमाने के साथ ‘मदर्स डे’ मनाना हमने सीख लिया है। सब खींच अपनी फोटों और ‘जियो आइडिया’ के साथ हर पल जीयो। मतलब साफ है जिंदगी का असली मज़ा कल्पना लोक में ही है। मिसेज दानी ने ‘मदर्स डे’ के शुभ अवसर पर अपनी माँ के सम्मान में संस्था में एक पार्टी रखी थी। सासू माँ को भी बुलाया, केक खिलाया। लेकिन केक काटने का अधिकार केवल मदर को था, मदर इन लॉ को नहीं। मदर इन लॉ यह अपमान भला कैसे सहती, केक का टुकड़ा अपने मुँह में डालते ही कहा–‘बधाई हो दानी। अगले साल तुम भी मदर से मदर इन लॉ बन जाओगी। मेरे साथ तुम भी अगली बार केक काटने की बजाय केक का टुकड़ा ही लेकर किनारे हो जाना।’ अनुभवी सासू माँ पार्टी में नए सदस्यों को बता रही थी कि मिसेज दानी को भी एक लड़का है। वैसे मैं किसी के मामले में इंटरफेयर नहीं करती। पलक झपकते ही यह भी कह डाला–‘कितना भी करो, मरो मेरे हाथ में सचमुच यश है ही नहीं।’ इस बात पर मि. दानी ने कहा–‘इतनी पढ़ी-लिखी हो कर भी कितनी छोटी बात करती हैं माँ जी आप। मैं तो ऐसी बातें सोच भी नहीं सकती।’

पार्टी खत्म और मिसेज दानी का गुस्सा भी खत्म। फेसबुक पर सारे फोटो अपलोड कर कमेंट का इंतजार करते हुए कब नींद लगी, पता ही नहीं चला। सुबह नींद खुली तो सामने अखबार हाथ में लिए सासू माँ बोली, ‘दानी तुम्हारी फोटो तो बड़ी अच्छी आई है, आखिर बहू किसकी हो!’

बस फिर क्या था मूड बन गया मिसेज दानी का। अब वे दोनों सुबह से ही व्यस्त हो गईं। अखबार लिया और झट अखबार का फोटो खींच दोनों ने अपने-अपने व्हाट्सएप अकाउंट, फेसबुक अकाउंट के स्टेटस बदलने में लग गई। सासू माँ ने तो पूरे अखबार के कवर पेज को लेकर पिक (तस्वीर ) लिया और डीपी में लगा दिया।


Image : Two Women in Blue Blouses
Image Source : WikiArt
Artist : Pierre-Auguste Renoir
Image in Public Domain

संपदा पांडेय द्वारा भी