भारत दुर्दशा का चित्रहार
- 1 April, 2015
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- 1 April, 2015
भारत दुर्दशा का चित्रहार
भाइयो और भाभियो, माताओ और पिताओ, सबके पितरो और उनकी आत्माओ! आपलोग के लिए प्रणाम, सलाम, हलो सब एक साथ कूरियर से भेजा जा चुका है। का बोले? मिल गया है? थैंक यू माने धन्यवाद। अरे आपको नहीं, ई कूरियर वाला लोग को थैंक यू कहना मोस्ट-मोस्ट जरूरी है आज की तारीख में। का बोले? हम कौन हैं? धत्तेरे की, हम अपन बारे में तो बतइबे नहीं किए। अरे, हम वही हैं जो अबकी बार आपको चित्रहार सुनाने, दिखाने आए हैं। ऊ जो मैडम पहिले आती थीं न, उनका गला के गली में न खुसखुसी हो जाने से हमको ई चांस मिल गया है। का बोले? हमरा नाम का है! अरे नाम का तो नामे मत लीजिए। ऊ सेक्सपियर कहबे किहिस था कि नाम में का रखा है। नाम-वाम के फेर में मत पड़िए। का बोले? चित्रहार का थीम क्या है? वही थीम रहेगा जो आपलोग को पसंद आएगा। माने भारत दुर्दशा। देस का एतना दुर्दशा हो गया है, होइयो रहा है, आगे भी होते रहेगा। फिर भारत दुर्दशा से बेहतर थीम का हो सकता है।
एगो पुराना जमाना के गीतकार लिखीस था और वो ही गाइस भी था कि देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान, कितना बदल गया इनसान। सच्चे गाइस था बेचारा, कितना बदल गया इनसान। सूरज न बदला, चाँद न बदला, ना बदला आसमान। बाकी इनसान केतना बदल गया है। एही बात पर एगो देशवंदना की गीत सुनिए–
‘जय भारत माता, ओम जय भारत माता
फिल्मी गाना छोड़ हमें कुछ और नहीं आता।
ओम जय भारत माता।।
मइया सुन लो जरा अपना ये कहना,
आज तक जैसे रखा वैसे ही कल रखना।
थाली सजा के रखना
लड्डू खिला के रखना,
उल्लू बना के रखना,
लुच्चा बना के रखना,
बेशर्मी से भाषण देना किसे नहीं आता,
ओम जय भारत माता, ओम जय भारत माता…’
का बोले? मन पवित्र हो गया? होबे करेगा। भारत माता की वंदना सुनके किसका मन पवित्तर नहीं होगा। बाकी एक बात जरूर से जरूर है कि हमलोग के भारतमाता का हालचाल बहुत खस्ता है। केतना तरह के तो बीमारी लग गया है। लेकिन फिकिर नौट। ऊ ए ठो फ्रांसीसी ज्योतिषी था न नोटीरियस? ऊ बहुत पहिले लिखिस था…। का बोले? नाम गलत बोल रहे हैं, नोटोरिसय नहीं नास्त्रेदमस नाम था उसका? चाहे जौन नाम हो ससुर का, ऊ लिखिस है कि तीन समुद्र के इलाका वाला देस में एक ठो अइसा नेता उभरेगा, जो समूचा वर्ल्ड का सबसे जोरदार नेता बन जाएगा। इधरो बहुत हल्ला है कि कौनो महान आदमी आने वाला है। बाकी ई नेतवन का तो नामे मत लीजिए। का बोले? चित्रहार का क्या हुआ? सुनाते हैं भाई, चित्रहार भी सुनाते हैं बाकी भारत माता का बेहाल हाल भी तो सुनिए। सबसे रद्दी बात ई है कि सब चीज का पतन हो रहा है। का बोले? पतंग? पतंग नहीं, पतन। माने गिरावट माने, डाउन फौल। अगल-बगल में जेतना कुछ रहता है, उसको ई पतन महाराज धड़ाम से गिरा देते हैं। दिखाई नहीं देता? कहीं आदमी गिर रहा है, कहीं उसका कैरेक्टर गिर रहा है, सेयर का भाव गिर रहा है, कहीं नेतवन का ताव गिर रहा है। सब जगह गिरावटे गिरावट। एगो गाना में मुहम्मद रफी साहब सच्चे गाइन थे कि ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है। आपलोग तो बस ई वाला गाना सुनिए–
‘चांस देखकर बकबक करना अच्छा होता है
सही समय पर दुबक जाना अच्छा होता है
आजा मौसम अलबेला है
आजा खाने की बेला है,
गिरावट का कमाल है बंधु
जीत या हार में क्या रखा है?’
एतना सीरियस गाना सुनके दिमाग नरभसा तो नहीं गया है? का बोले? भ्रष्टाचार बहुत फैला है? क्या कीजिएगा! आकाश में, पाताल में, अफसर में, चपरासी में, लाइफ में, वाइफ में, साँझ में, भोर में–जहाँ जाइएगा, इसी को पाइएगा। का बोले? कौनो दूसरा बात बोलें? नहीं भाई साहब, दूसरा बात नहीं बोलेंगे हम, काहे कि ई जो है न भारत दुर्दशा का चित्रहार है। कहिए तो एकाध ठो सेर मारें। का बोले? जंगल वाला सेर? नहीं भाई साहब, उहाँ वाला नहीं, ई सायरी वाला सेर मारेंगे। सुनिए–
‘कालिख मेरे पैंट की जिधर देखिए ब्लैक
इसे मिटाने जो चला वही हो गया ब्लैक।’
कइसा लगा? अइसा बहुते सेर है हमारे पास। बाकी ऊ सब बाद में, अभी तो एक ठो नामी सायर का बात बताते हैं, जौन कहिस था कि दीवाना आदमी को बनाती हैं रोटियाँ, देखा न जाए वो भी दिखाती हैं रोटियाँ। ठीके कहिस है सायर कि समूचा तामझाम रोटी के लिए है। बस, पापी पेट का सवाल है। बाकी पेट भरने का कौनों आखिरी स्टौपेज है कि नहीं? भारत दुर्दशा के चित्रहार में अगला गाना बताता है कि घूस माने रिश्वत के हरा-भरा बगीचा में कमाने का कोई दी एंड नहीं है। ई वाला गाना तो सुनिए–
‘मुझे कहते हैं सब रिश्वत लाल
मैंने कर डाला सबको हलाल,
कि तेरा-मेरा साथ रहेगा।
बरसों से पहचाने मुझको जमाना
घूस, दस्तूरी, सलामी, नजराना,
घूस दिए बिना चले नहीं जाना
सारी दुनिया को करता बेहाल,
मैं करता हूँ हरदम कमाल
कि तेरा मेरा साथ रहेगा;
मुझे कहते हैं सब रिश्वत लाल
कि तेरा-मेरा साथ रहेगा।’ का कहते हैं? यही तो भारत दुर्दशा का हाल है। सब कोई एक दूसरा को लंगी मारने में चंपीयन है। कोई किसी से कम नहीं है, एक से एक लफंगा का भंडार है मेरा भारत महान में। भ्रष्टाचार है, घूसखोरी है, जातीयता है, फूट, बैर, डाह, मारामारी, खींचातानी–सबका नाम गिनाना पड़ेगा। केतना बोलें। मुँह दुखा जाएगा। चलिए, आपको एक ठो लहरदार गाना सुनाते हैं, वही चित्रहार वाला गाना। सुनिए–
‘जहाँ मैं जाती हूँ तबाही मच जाती है
आग बुझे नहीं ऐसी लग जाती है,
ये तो बताओ जी तुम, मैं कौन हूँ।
हम लाए हैं अँग्रेजी से हिंदी निकाल के
तुम फ्रीज में रखना इसे बंधु सँभाल के,
हम लाए हैं फैशन नए-नए कमाल के
तुम खोजते रह जाओगे मौके धमाल के।
जहाँ मैं जाती हूँ तबाही मच जाती है,
ये तो बताओ जी तुम मैं कौन हूँ।
इस दौर में सुर से, न उसे ताल से मारो
दुश्मन को अगर मारो तो हड़ताल से मारो,
जो भी उठाए शोर उसे रोग से मारो
जो रोग से मरे नहीं आयोग से मारो
जहाँ मैं जाती हूँ तबाही मच जाती है
साँच को आँच की बीमारी लग जाती है,
ये तो बाताओ जी तुम, मैं कौन हूँ।’
ई गाना सुनके कइसा लगा? मुँह खुला के खुल्ले रह गया होगा। गीते अइसा है। आखिर तक पते नहीं चलता है कि जनाना है कि जनानी। नहीं पता चला? कइसे पता चलेगा! जिसको देखिए वहीं नरभसाया हुआ है। पते नहीं चलता है कि अपराधी कौन है और आतंकवादी कौन है। ऊ लोग अपना काम धड़ाधड़ कर रहे हैं। कहूँ मर्डर कर दिया, कहूँ बम पटक दिया, कहूँ रेप कर दिया, कहूँ आग लगा दिया। यही लोग के भरोसे ई देस चल रहा है। का बोले? मीडिया वालन का भी जोगदान है। काहे नहीं। मीडिया वाला लोग साइकिल स्टैंड के उद्घाटन से लेके चार मरे बारह घायल टाइप कौनो समाचार से परहेज नहीं करते हैं। फलाना का स्कूटर चोरी हो जाय, तब सहर भी मीडिया वाला लोग अपना-अपना कैमरा, माइक लेके हाजिए हो जाएँगे कि भाई साहब, स्कूटर चोरी होला पर आपको कइसा लग रहा है? एगो मीडिया वाला कह रहा था कि जहाँ लंच पैकेट के साथ गिफ्ट नहीं मिले, ऊँहाँ जाना एकदम फालतू है। का बोले? गाना सुनावें। सुनिए–
‘धरती पर छा गया है मीडिया
सबके मन भा गया है मीडिया,
ई मीडिया क्या क्या दिखाय
ई मीडिया क्या क्या न कराय…
टीवी में दिखा के रंगोलिया
ई मीडिया सबको लुभाय,
रेडियो में सुना के जयमालवा
ई मीडिया सबको सताय
ई मीडिया क्या क्या न कराय…
भोरे भोरे छाप के अखबरवा
ई मीडिया माथा दुखाय,
ऐड दिखाके ई मीडिया
अंटी खाली करवाय।
धरती पर छा गया है मीडिया
ई मीडिया क्या क्या न कराय…’
अइसा है मीडिया, का समझे! का बोले? नहीं समझे? समझबो नहीं कीजिए। एतना भारत दुर्दशा बिगड़ गया, आप समझे? एगो पुराना फिल्मी गीत में लिखनिहार लिखिस है कि रातभर का मेहमां अँधेरा, किसके रोके रुकेगा सबेरा। टकटकी लगा के लोग ताक रहे हैं–वो सुबह कभी तो आएगी! ऊ लोग का सबेरा आवे चाहे मत आवे, हम आपलोग को भारत दुर्दशा का चित्रहार देखाइए दिए, सुनाइए दिए। आखिर में जयहिंद मारने का टाइम हो गया है। सपना में रहने दो सपना मत मिटाओ, सपना मिट गया तो नींद खुलिए जाएगा।
Image: Brooklyn Museum Miniature Painting
Image Source: Wikimedia Commons
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