एसीबी के चक्कर में

एसीबी के चक्कर में

देर रात मोबाइल की लाइट कौंधी और स्क्रीन पर एसीबी नाम, किसी फिल्म की कास्टिंग की तरह हाईलाइट हुआ। चिपकू बाबू कुंभकरण की परंपरा का निर्वाह करते हुए भारी खर्राटों के बीच गहरी नींद में सोए पड़े थे। वाइब्रेशन मोड पर मोबाइल भी खर्राटे जैसा ही अहसास दे रहा था। ऐसा एक नहीं दो-तीन बार हुआ। हार कर चिपकू की घरवाली की ही नींद खुली। मोबाइल उठाया तो डर के मारे पसीने छूट गए। हाथ-पैर काँपने लगे। दाँत कटकटाने लगे।

वह मुँह पर हाथ रखकर बुदबुदाई, ‘हाय दैया! ये कहाँ फँस गए? अब क्या होगा?’ उसने काँपते हाथों से मोबाइल का स्विच ऑफ कर दिया। पर रातभर करवटें बदलने के बाद भी नींद नहीं आई। एसीबी यानी एंटी करप्शन ब्यूरो यानी भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो की चपेट में आकर भला कौन नींद ले सकता है? सुबह उठकर भी चैन नहीं मिल पा रहा था। सोचा इन्हें उठाकर पूछूँ कि आखिर माजरा क्या है? फिर सोचा अभी सोने दूँ, उठने के बाद तो सोना होगा ही नहीं? आखिर ये ऐसा क्या करते हैं?

मुझे तो हर माह मुट्ठीभर वेतन बड़े दुखी होकर पकड़ा देते हैं। इनकी बदकिस्मत का रोना तो दिन-रात घर में मर्सिया की तरह गूँजता रहता है। पाई-पाई को तरसती मैं, और बिलबिलाते बच्चों को देखकर सारे पड़ोसी तरस खाते हैं। फिर भी ये बड़े मज़े से खाना खाते हैं! ईमानदारी की मूरत बने इस आदमी को कोई धूप-बत्ती भी नहीं करे। घूस देना तो दूर की बात है। उसने मन ही मन अनगिनत सवाल किए और ज़वाब भी खुद ही देती रही। जीवनभर फाइलों के समंदर में डूबकर भी; हमारे पहाड़ से दुखों के लिए खुशहाली का एक अदद मोती नहीं तलाश पाए! दुख भरे दिन बीत ही नहीं रहे और अब ये एसीबी का चक्कर? जाने क्या होगा? क्या बिटिया के हाथ पीले होने के दिनों में इनके हाथ गुलाबी होंगे? जेल की सलाखों के पीछे चक्की पीसेंगे, सुबह और शाम वहाँ लोहे के चने चबाने होंगे सो अलग।

हे राम! ये किस मुसीबत में फँसा दिया। वैसे इनका कोई नाम भी नहीं, फिर भी बदनाम होंगे? किस मुँह से मैं पड़ोसियों से बात करुँगी? बच्चे स्कूल में दूसरे बच्चों से कैसे नज़रें मिलाएँगे? ये सोचकर ही पत्नी चिपकूआइन का चेहरा पीला पड़ रहा था।

सुबह अचानक एक लंबी उबासी के साथ चिपकू बाबू ने खटिया छोड़ी। नल से मुँह धोया और पूरे मोहल्ले में बिजली गिराने जैसी आवाज़ में गरारे किए। चेहरे पर बेवजह चमकता आत्मविश्वास बता रहा था जैसे कुछ हुआ ही नहीं? पत्नी जी को पतिदेव की ये अदा कतई पसंद नहीं आ रही थी। चिपकू बाबू की अदाएँ अदालत के चक्करों के भय से पूर्णतया मुक्त दिखाई दे रही थीं। उधर चिपकूआइन का वजन पिछले पाँच घंटों में दो किलोग्राम कम हो गया था। मरद जात हमेशा घाव में घोबा डालकर भी कैसे निश्चिंत हो जाती है? कल को एसीबी इन्हें पकड़ कर ले जाएगी। सारा मोहल्ला तमाशा देखेगा। यह भी पहली बार ही होगा जब किसी सुदामा के घर पर एंटी करप्शन ब्यूरो छापा डालेगा। पुराने मटके के पास पड़े पाँच रुपये का एक अदद सिक्का, टूटी खटिया, गिनती के दस बर्तन, फटी हुई चार रजाइयाँ और खूँटी पर टँगे गुजरे ज़माने की आखिरी निशानी के रूप में नीले धारीदार कच्छे के साथ दो मैली-कुचैली बनियानों के सिवा उन्हें कुछ भी नहीं मिलेगा। दीवारों में कई छेद हैं, जिनसे पड़ोसी का घर ही दिखाई देगा। हाय राम! ये कौन से जनम का बदला ले रहे हो हमसे?

चिपकू बाबू इन सबसे बेखबर, तैयार होकर फिर दफ्तर चल पड़े। चिपकूआइन को अब ये चिंता सता रही थी कि ये शाम को घर वापस भी आएँगे कि नहीं? क्या इनके साथी ये दुखभरी खबर लेकर आएँगे कि चिपकू बाबू आज से ‘बड़े घर’, में रहेंगे? हमें तो बड़े घर का सपना ही दिखाते रहे। पहाड़-सी चिंताओं के बीच दबी चिपकूआइन पूरे दिन आँसू बहाती रही। शाम को जब दरवाज़े पर दस्तक सुनाई पड़ी तो चिपकूआइन की रूह काँप गई। क्या एसीबी वाले अब घर की तलाशी लेने आए हैं? उसके चेहरे पर आश्चर्य के भाव उभरने लगे! दरवाज़ा खोला तो चिपकू बाबू रोज़ की तरह फिर बेवजह हँसते हुए दरवाज़े पर खड़े थे। वैसे ग़रीबों के पास हँसने की कोई वजह नहीं होती, इसलिए वे बेवजह हँसते रहते हैं! चिपकू देर से दरवाज़ा खोलने को लेकर नाराज़ हुए और गाली-गलौज करते हुए घर के भीतर घुसे। चिपकूआइन को रह रह कर उन पर दया आ रही थी। सोचा एक-दो दिन में इनकी सारी हेकड़ी वैसे ही उतरने वाली है, जाने भी दो यारों की तर्ज़ पर वह गुस्सा पी गई।

रात को खाना खाने के बाद चिपकू बाबू फिर गहरी नींद में सो गए। वही खर्राटे गूँज रहे थे। देर रात फिर फोन घिर्र…घिर्र करने लगा। चिपकूआइन ने मारे डर के फिर देखा, स्क्रीन पर एसीबी नाम उभर रहा था। एक पल उसे लगा एसीबी वाले देर रात ही मौका ताड़ते हैं ताकि नींद में ही उठा ले जाएँ। उसके चेहरे पर फिर पसीना बहने लगा।

इस बार चिपकूआइन ने हिम्मत कर फोन रिसीव किया। उधर से धीरे से आवाज़ आई, ‘अक्की चंद्रा बेधड़क, बोल रही हूँ, तुम्हारी प्यारी ‘एसीबी’। क्या हुआ? दो रात से फोन क्यों नहीं उठा रहे? क्या तुम्हारी केएम (कलमुँही) ने मुँह पर पट्टी बाँध रखी है?

अगले ही पल, चिपकूआइन के चेहरे पर आड़ी-टेढ़ी चिंता की लकीरें लट्ठ की तरह से सीधी खड़ी हो गईं। गुस्से से मुँह लाल हो गया। आँखों से निकलते अंगारों से कमरे का तापमान गर्म हो गया। उसे ‘एसीबी’, का चक्कर समझने में थोड़ी देर लगी। पर देर आयद दुरुस्त आयद! रात को शोर से मोहल्ले की शांति भंग होने के ख़तरे को देखते हुए वह सुबह के इंतजार में; बेलन लिए खटिया के पास बैठ गई। मुई, हर चिंता में आदमी सोता ही रहता है और औरत को जागना क्यों पड़ता है!! सुबह क्या हुआ? बताने की ज़रूरत है क्या??


Image : Esther Bensusan, the Artist_s Wife
Image Source : WikiArt
Artist : Lucien Pissarro
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