मच्छरदानी
- 1 August, 2022
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- 1 August, 2022
मच्छरदानी
डॉक्टर चौधरी के यहाँ जब मैं शाम के सात बजे पढ़ाने गया तो देखा उनके दोनों बच्चे मच्छरदानी के अंदर कैद हैं। मैंने पूछा–कैसे पढ़ोगे? मैं कहाँ बैठूँ? बच्चों ने कहा–मच्छरदानी के ही अंदर आ जाईए न सर।
मैं मच्छरदानी के अंदर जाने ही वाला था कि बिजली चली गई। लालटेन से मच्छरदानी के अंदर में नहीं पढ़ाया जा सकता क्योंकि प्लास्टिक के धागे आपस में चिपक जाएँगे। परंतु मच्छरदानी तो पहले से ही जहाँ-तहाँ चिपका हुआ था, अर्थात पहले भी लालटेन से मच्छरदानी में पढ़ा जा चुका था। मच्छरदानी इतना बड़ा था कि दो चौकियों को ढक रखा था। इतने में डॉ. साहिबा किचन से ही बोलते हुए आई–
आजकल इतना मच्छर हो गया कि कोई उपाय नहीं सूझता। पहले गर्मियों में ही मच्छर काटता था पर अब तो सालों भर काटता है। बच्चे परेशान हो जाते थे इसलिए बड़ा-बड़ा मच्छरदानी खरीद लिए हैं। पहले तो शहर में ही विशेषकर मुजफ्फरपुर, गया में मच्छर का प्रकोप था। बाप रे, एक बार मुझे मुजफ्फरपुर स्टेशन में रात गुजारने का मौका मिला। गर्मी में चादर ओढ़ने के बावजूद हाथी जैसा लंबे-लंबे सूँढ़ से चादर के ऊपर से ही काटता था। आज तो गाँव, देहात सभी जगह मच्छर का भरमार है। पहले कहा जाता था कि गंदगी के कारण ही शहरों में मच्छर है और सफाई के कारण ही गाँव में मच्छर नहीं हैं। पहले गॉंव के लोग गर्मियों में बाहर में खुले आकाश के नीचे सोते थे। इसे देखकर शहरवाले ललचाते थे। अब तो अंतर ही न रहा। पहले सरकार मच्छर मरवाती थी, अब तो वो भी नहीं। मच्छर मारने के जितने भी उपाय थे सबको आजमाया, परंतु सब बेकार। डरकर मच्छरदानी खरीदना पड़ा कि बच्चों को उसमें कैद कर के रख सकूँ।
क्या करूँ? कोई चारा भी तो नहीं है।
मैं सोच रहा था–आदमी कितना चालाक होता है? कैद आदमी होता है और नाम रखता है–मच्छरदानी। सलीके से तो इसका नाम आदमीदानी होना चाहिए। जिस तरह से चूहा के लिए चूहादानी, सिंदूर के लिए सिंदूरदानी, फूल के लिए फूलदानी आदि, उसी तरह आदमी के लिए आदमीदानी। कोई बात नहीं महाशय एक-न-एक दिन ऐसा आएगा, मच्छरों का भी संगठन बनेगा या कोई महामानव पैदा होगा और मच्छरों के अधिकार के लिए आंदोलन करके उसे सही हक दिलाएगा। कितना विरोधाभास नाम है। आजाद मच्छर को…। मच्छरों से डरकर, हारकर कैद हो रहा है इनसान और अपने कैदखाने का नाम दे रहा है–मच्छरदानी। इतने में बिजली आ गई और डॉ. साहिबा चाय बनाने के लिए रसोई घर में चली गई परंतु अभी भी बुदबुदा रही थी। इतने में अलगनी से सिर टकराया और उस पर बैठी अनेक मक्खियाँ उनके चेहरे और सिर पर बैठ गई। हाथों से मक्खियों को उड़ाते और झुझलाते हुए बोली–मैं तो आजीज आ गई हूँ इस मच्छर और मक्खियों से। काम न हो तो सपरिवार दिन में भी मच्छरदानी लगाकर बैठती हूँ। इस छोटे से कीड़े ने तो हमें नाकों दम कर रखा है। खाते, सोते, उठते, बैठते कहीं चैन नहीं है।
मैं फिर सोचने लगा–छोटे-छोटे कीड़े…। आदमीदानी में रहने वाला मानव, मक्खीदानी में रहते हैं (मच्छर के तर्ज पर) परंतु बेचारे मच्छर को बदनाम करते हैं। पहले अगरबत्ती (अगुरबत्ती) ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए होता था और अब मोटिन, ऑलआउट, मच्छर अगरबत्ती आदि मच्छर भगवान के लिए विशेषतौर से बनाया गया है। कई कंपनियाँ आई, ढेरों पैसे भी कमाई पर मच्छर तो जस-के-तस हैं। याद आया, हनुमान जी लंका जा रहे थे सुरसा से मुकाबला करने के क्रम में जैसे-जैसे सुरसा बदन बढ़ाती, हनुमान जी भी उससे दुगुना विस्तार कर लेते थे। अंत में मच्छर के समान रूप हनुमान जी धारण करके निकल पड़ते हैं। आज मानव भी सुरसा के समान अपना रूप विस्तार कर रहा तो मच्छर भी हनुमान जी की तरह अपनी संख्या दुगुना विस्तार करता जा रहा है और अंत में मच्छर भी मसक (छोटा मच्छर) समान रूप धारण करके मानव रूपी दुश्मन को मच्छरदानी रूपी किला के अंदर घुस के त्रास देना शुरू कर देता है। मेरी माँ कहती है कि मच्छर के लिए तो मच्छरदानी लगा लेती हूँ पर कुटकी (छोटा मच्छर) के लिए क्या करूँ। यह तो मच्छरदानी में भी घुस कर काटता है।
मानव कहता है कि मैं धरती ही नहीं चाँद पर, मंगल आदि पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया हूँ। जल, थल और वायु पर विजय पा लिया हूँ। उस मानव को छोटी-छोटी समस्याएँ इतने तंग करते कि उसके सामने मानव अपने को लाचार और बेबस महसूस करता है।
जब हम अपने देशवासियों के घर-परिवार को देखते हैं तो लगता है सब परेशान हैं, सब के पास कठिनाइयाँ है। अपने परिवार को अपने ही घर में कैद कर रखे हैं। कारण चाहे जो भी हो किवाड़ खुला मत छोड़े, कुत्ता, बिल्ली या चोर, डाकू आ जाएँगे। खिड़कियाँ खुली मत छोड़ो मक्खी, मच्छर आ जाएँगे। धूल और पानी आ जाएँगे। घर में बेटी है तो आवारा नजरें आ जाएगी, भूल से भी अपने किवाड़, खिड़की यहाँ तक कि बहुमंजिलों की छतों पर भी जो किवाड़ है वह भी खुली न रह जाए। अतः प्रकाश के साथ, हवा के साथ ये बुराइयाँ इस घर में न आ जाए, पूरा वातावरण प्रदूषित हो चुका है, केवल घर बचा है इसलिए इस प्रदूषण भरी काजल की कोठरी में केवल घर ही तो बचा है इसलिए कालिख से बचने के लिए घर में अपने आप को बंद कर ले।
घर में तो बंद थे ही परंतु अब घर के अंदर मच्छरदानी में अपने आप को बंदकर लो। झगड़ों से बचने के लिए, शांति से रहने के लिए, सुख से रहने के लिए मच्छरश्री को, मक्खी को, दुश्मन को आजादी से घूमने दो और अपने आप को कैद कर लो। मुझे परिवार प्यारा है, शांति प्यारी है, अहिंसा ही हमारा धर्म है। इसलिए इन मच्छरों को मत मारो, इसे स्वतंत्रतापूर्वक बिचरने दो। दस मच्छर की पैरवी मानवाधिकार वाले भी करते हैं, इनकी पैरवी आम जनता करती है। कहने को तो यह घर, यह राष्ट्र मेरा है परंतु इन पर तो परोक्ष रूप से मच्छरों का राज्य है, मच्छर चाहे तो खून बहाए, या खून चूसे, चाहे तो राष्ट्रव्यापी बंदी करे, चाहे तो आने-जाने दे। अर्थात उसकी मरजी से हम आम लोग चलते हैं।
आइए, एक बार विचार करें कि इस छोटे-छोटे कीड़े, वायरस, मच्छरों का जन्मदाता कौन? कहते हैं मच्छरों का जन्म गंदगियों से हुआ है। गंदगियों को किसने फैलाया? हमने, अर्थात मच्छर रूपी भस्मासुर का जन्मदाता हम चालाक मानव हैं। भस्मासुर के डर से हम भागे चल रहे हैं मच्छरदानी में, जो उसका घर है। घर की गंदगियों को घर के बाहर जमा किया। गंदे पानी को घर के बाहर जमा किया। फ्रिज में पानी जमा किया। तालाब (जल) को गंदा किया। वायु को गंदा किया। घर के आगे कूड़ा-कचरा का ढेर, मल-मूत्र, गोबर आदि जमा किया। हमारे द्वारा पैदा किया गया यह मच्छर हमारे ही सिर पर हाथ रख रहा है, हम भागे चल रहे हैं मच्छरदानी में। केवल स्थानीय रूप से ही हमने गंदा करके मच्छर को पैदा नहीं किया बल्कि जब हमारे नैतिकता का पतन हुआ तब भी इन मच्छरों का जन्म हुआ। हमने नेता (भ्रष्ट) बनकर देश का नेतृत्व सँभाला परंतु अपने घर को ही बढ़ाया जिसके कारण घर के बाहर मच्छरों का साम्राज्य हो गया है। अब तो घर के अंदर भी। हमने पुलिस ऑफिसर (भ्रष्ट) बनकर देश की रक्षा करने चला परंतु रक्षक बन कर भक्षण करता रहा जिसके कारण आज वन, बाग, पहाड़ आम आदमी के लिए निषिद्ध है। जिस मच्छर रूपी रक्तबीज का जन्म हमने दिया है, क्या एक-दो या हजार दो हजार मरने के बाद क्या मच्छरों का अंत हो पाएगा? क्या आने वाली पीढ़ियाँ स्वतंत्रता को सही मायने में जान पाएगी? हम अपने घरों के घरों में जो कैद हो गए हैं क्या सचमुच हम आजाद हो पाएँगे?
Image : Mosquito Nets
Image Source : WikiArt
Artist :John Singer Sargent
Image in Public Domain