वे किसी की निंदा नहीं करते

वे किसी की निंदा नहीं करते

पिछले दिनों नटवरलाल जी मिल गए। हमें देख कर बेशर्म के फूल की तरह खिल गए। लोग उन्हें निंदक शिरोमणि के नाम से भी जानते हैं। सेल्फमेड व्यक्ति हैं, अपनी प्रशंसा के मामले में!

बातों-ही-बातों में अपनी तारीफ़ करते हुए कहने लगे, ‘मैं तो किसी की निंदा नहीं करता। यह मेरे स्वभाव में है। लेकिन दुनिया में ऐसे-ऐसे नमूने भरे पड़े हैं कि क्या कहें। जब देखो, किसी-न-किसी की निंदा करते रहते हैं। अब अपने रामलाल को ही देख लो न, वो बंदा हमेशा शिकायती-मोड पर रहता है। लगता है, बिना शिकायत किए उसका खाना ही नहीं पचता। दुनिया में ऐसे अनेक कलाकार भरे पड़े हैं, साहब।’

मैंने कहा, ‘आपने बड़ा सही कहा। आजकल ऐसे लोग दुर्लभ हो गए हैं, जो किसी की निंदा न करें। आपकी सोच अद्भुत है। पिछले दिनों श्यामलाल मिले थे। आपको याद कर रहे थे।’

नटवरलाल जी ने फौरन ही श्यामलाल की निंदा शुरू कर दी। बोले, ‘उसकी बात तो आप जाने भी दो। पता नहीं अपने आप को क्या समझता है। उसका लड़का नंबर एक का लंपट है, और उनकी लड़की की तो बात मत ही पूछो। बड़ा आदर्शवादी बनता है मगर बच्चों को देख लो। आपने भी सुबह-सुबह आखिर किसका नाम ले लिया! खैर, जिसको जो करना है, करे। अपने को क्या। अपने को किसी की निंदा नहीं करनी। अपने रास्ते चुपचाप चलना है। चार दिन का जीवन है। इसमें क्यों किसी की बखिया उधेड़ें, इसलिए मैं तो देख कर के भी अनदेखी कर देता हूँ। ठीक करता हूँ न?’

मैंने कहा, ‘बहुत ही अच्छा करते हैं आप। कमाल करते हैं। समाज में आप जैसे लोगों की ज़रूरत है, जो किसी की निंदा नहीं करते, वरना तो आप देख ही रहे हैं न दुनिया को। अरे, टीवी के चैनलों को ही देख लो, वहाँ हर कोई एक-दूसरे की निंदा करता मिल जाएगा। बड़े अजीब हो गए हैं लोग।’

मेरी बात सुनकर नटवरलाल जी ने अपनी मुंडी हिलाई और कहने लगे, ‘आप तो बनवारीलाल को जानते होंगे। वह भी हर किसी की निंदा करता रहता है। बड़ा ही घटिया जीव है। पिछले दिनों किसी ने बताया है कि वह तो मेरी भी निंदा कर रहा था, यह बोल कर कि मैं सबकी निंदा करता रहता हूँ। अब बताओ भला। मैं किसी की निंदा करने क्यों जाऊँ। आपको तो पता ही है कि मैं निंदा-फिंदा से कितनी दूर रहता हूँ। जो अधिक निंदा करते हैं, उन्हें तो रात को नींद भी नहीं आती। नींद की गोलियाँ खाते हैं।’

मैंने मुस्कराते हुए कहा, ‘लेकिन सुना है कि आप भी नींद की गोलियाँ लेते हैं?’

इस पर भी वे गंभीर होकर बोले, ‘हालाँकि कभी-कभी मैं भी खा लेता हूँ लेकिन निंदावादी होने के कारण नहीं। दो का चार, चार का आठ कैसे करें, इस चक्कर में तनाव बना रहता है। यही कारण है कि नींद नहीं आती। हमारे पड़ोस में सेठ छदामीराम रहता है। उसको भी नींद न आने की बीमारी है। आपको शायद पता न हो, वह नंबर दो का काम करता है। अय्याश भी है। कभी-कभी सोचता हूँ, उसने इतनी दौलत कैसे कमा ली। जो भी हो, मुझे भी उसके जैसा सेठ बनना है।’

मैंने कहा, ‘जब आपने मन में ठान ही लिया है तो एक दिन आप सेठ बनेंगे-ही-बनेंगे। एक आध बार सेठ से मिल लीजिए। कुछ टिप्स मिल जाएँगे।’

इतना सुनना था कि नटवरलाल जी भड़क गए और कहने लगे, ‘अरे, किस सेठ से मिलोगे। सब-के-सब ऐरे-गैरे हैं। एक बार मैं सेठ किरोड़ीमल से मिलने गया था, वह तो सीधे मुँह बात ही नहीं कर रहा था। तो भैया, किसी से मिलना फिजूल है। सबको अपनी-अपनी पड़ी है।’

मैंने टॉपिक बदला और दूसरी बात शुरू करने के उद्देश्य से कहा, ‘और सुनाइए, आजकल क्या चल रहा है?’

नटवरलाल बोले, ‘कुछ खास नहीं चल रहा है। बस हमको हमारा पड़ोसी बहुत खल रहा है। जब देखो, अपने वैभव का प्रदर्शन करता रहता है। अभी उसने अपनी पुरानी कार बेचकर नई कार खरीदी है। जब भी घर वापस आता है तो हॉर्न ज़रूर बजाता है ताकि मुझे पता चल जाए। एक-से-एक घटिया लोग हैं संसार में। अरे भाई, तुम पैसे वाले हो तो अपनी जगह हो। हमको क्यों दिखाना चाहते हो।’ 

मैंने कहा, ‘आजकल तो जिसे देखिए, वही पुरानी कार बेच कर नई खरीद लेता है। मुझे लगता है आपके पड़ोसी ने भी इसी कारण नई कार खरीदी होगी। पता कर लीजिएगा,  लोन लेकर खरीदी होगी। आपको भला क्यों दिखाना चाहेंगे?’

नटवरलाल भड़कते हुए बोले, ‘अरे छोड़िए साहब! हम सब जानते हैं इन शातिर पड़ोसियों को। मुझे तो लगता है मुझे दिखाने के लिए ही उसने कार खरीदी है। खैर, मुझे इससे क्या। आप तो जानते ही हैं कि मैं सीधा-सादा व्यक्ति हूँ। किसी की निंदा नहीं करता। जिसको जो करना है, करे। अपुन को क्या।’

मैंने नटवरलाल जी को चने के झाड़ पर चढ़ाते हुए कहा, ‘आप धन्य हैं। आप जैसे निर्मल हृदय के लोग दुनिया में टॉर्च लेकर ढूँढ़ने से भी नहीं मिलेंगे।’

अपनी झूठी तारीफ़ सुनकर वे फूल कर कुप्पा हो गए और कहने लगे, ‘आप जैसे इक्का-दुक्का लोग ही हैं, जो मेरी खासियतों से परिचित हैं। वरना आजकल तो हर कोई एक-दूसरे की निंदा और बुराई करने में ही लगा रहता है। भगवान ने मुझे इन दुर्गुणों से बचा के रखा है। हमारे पड़ोस में मिस्टर सो-एन्ड-सो रहते हैं। उनकी सुबह निंदा से शुरू होती है और रात भी निंदा के साथ समाप्त होती है। इसलिए उनको दूर से नमस्ते करता हूँ। हालाँकि पता नहीं क्यों, वे भी मुझे देखकर दूर से ही नमस्ते करके घर के भीतर घुस जाते हैं। गोया मैं उनके साथ बैठ कर किसी की निंदा करने भिड़ जाऊँगा। अजीब लोग हैं। उनके बगल में एक और सज्जन रहते हैं, ‘कखगघजी’। उनके बारे में भी यही सुना है कि वे हमेशा किसी-न-किसी की मीनमेख निकालते रहते हैं। पता नहीं लोगों को इसमें क्या मज़ा आता है। मैं तो इन सब चीजों से परे रहता हूँ। कबीर दास ने कहा है न कि, ‘बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलिया कोय, जो दिल खोजा आपना मुझसे बुरा न कोय’, इसलिए किसी की निंदा क्यों करना। जब आप  किसी पर एक उँगली उठाते हैं तो आपकी तीन उँगलियाँ आप ही की तरफ उठी रहती हैं। ऐम आय रॉन्ग?’

मैंने कहा, ‘अरे, गलत हों आपके दुश्मन! आप तो सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र की वंश-परंपरा से आते हैं शायद।’

मेरी बात सुनकर वे दाँत निपोर कर हँसने लगे, फिर बोले, ‘आपने तो मुझे फर्श से अर्श पर चढ़ा दिया। कहीं वहाँ से नीचे न गिर जाऊँ धड़ाम से। यह तो मानना पड़ेगा कि आप जैसे लोग दुनिया में बहुत कम हैं। ज्यादातर लोग तो टाँग खींचने में लगे रहते हैं। अब आप उनको तो जानते होंगे लटकन कुमार को, बहुत सीधे बनते हैं। किसी से बात ही नहीं करते। मुझे देखकर कन्नी काट लेते हैं। मैंने उनके बारे में सुन रखा है कि नंबर एक का चालू जीव है। परम स्वार्थी। किसी के कटे पर फूँक भी न मारे।’

‘अच्छा! ये सब आपने किससे सुन लिया?’ 

नटवरलाल जी किसी का नाम नहीं बता सके। बस इतना ही बोले, ‘अब याद नहीं आ रहा है, किससे उनका किस्सा सुना, लेकिन सुना ज़रूर है। आप तो जानते ही हैं कि मैं झूठ नहीं बोलता। न किसी की निंदा करता हूँ। माँ कसम! जो बोलता हूँ, सच बोलता हूँ। खैर, अपने को क्या, हम सीधे-साधे लोग हैं। न ऊधो का लेना, न माधो का देना।’

नटवरलाल की बातें सुनकर मज़ा आ रहा था। और जिंदगी में पहली बार एक ऐसा व्यक्ति मेरे सामने खड़ा था, जिसका तकिया कलाम ही था कि ‘मैं किसी की निंदा नहीं करता’ मगर कदम-कदम पर सबकी निंदा किए जा रहा था। मैं समझ गया कि यह बंदा साहित्य के जो नौ रस होते हैं, उनमें दसवाँ रस निंदा-रस भी शामिल करने की दिशा में सक्रिय है। रुकता तो कुछ और लोगों की निंदा सुनने का (सौभाग्य नहीं) ‘दुर्भाग्य’ प्राप्त होता। इसके पहले ही कि नटवरलाल और अधिक ‘रायता’ फैलाते, मैंने वहाँ से निकल लेना ही बेहतर समझा।


Image : Portrait of a Man
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Artist : Antonello da Messina
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गिरीश पंकज द्वारा भी