बेटी
पर मम्मी इतनी सुंदर दुनिया में हमारे अपने ही हम बेटियों से नफरत क्यों करते हैं? हमें भी तो इस सुंदर दुनिया को देखने का मानवीय हक है।
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पर मम्मी इतनी सुंदर दुनिया में हमारे अपने ही हम बेटियों से नफरत क्यों करते हैं? हमें भी तो इस सुंदर दुनिया को देखने का मानवीय हक है।
अभी फोन पर बात ही हो रही थी कि बातों के बीच में टू टू टू की आवाज आने लगी। ऐसा ही होता है पुस्तक प्रकाशन के बाद के कुछ दिनों तक।
कोई व्यक्ति मात्र अपनी महानता साबित करने को ऐसे नहीं रह सकता है। वीथिका माँ मुझे बताइये क्या था आपके मन में?
मेरा यही रूप मेरी लिए बेड़ी बन चुकी है दीदी। मन तो करता है अपने चेहरे को जला दूँ। जहाँ जाती हूँ, वहीं ताना सुनना पड़ता है।
वीथिका अपनी मित्र भारती दत्त के साथ यहाँ आकर देर से खड़ी चढ़ती गंगा को देख रही थी। जून माह का यह आखिरी दिन है। ग्रीष्मावकाश है। परिसर खाली है।
अरसे बाद सिराज को देखकर टुटुल मुस्कुराया। सिराज अपने पिता के पीछे खड़ा था। वह काफी लंबा हो गया है, उसकी पतली मूँछें भी उगने लगी थी। सिराज के पिता बटरफ्लाई मॉल के दरबान के आगे हाथ जोड़कर कह रहे थे।