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पानी पिला दो नानी

हालाँकि सरकार ने घर-घर पानी की योजना की घोषणा जरूर कर रखी थी लेकिन घोषणा केवल घोषणा होती है। पानी की कोई व्यवस्था सरकार कर ही न सकी। मजबूरीवश गाँव की महिलाएँ सुबह उठकर पानी भरने पाँच किलोमीटर पैदल जातीं और पानी भर कर वापस लौटतीं। थकी-हारी। दिनभर गर्दन दुखती रहती। गाँव के मर्द कमाने शहर चले जाते और वे भी देर रात लौटते।

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चमक

‘बापू, अब मैं शहर जा रहा हूँ। रिजल्ट आने वाला है, सोचता हूँ, कोई नौकरी ढूँढ़ लूँ! रुपये-पैसों की फिकर मत करना। मैं शहर से भेजता रहूँगा। और हाँ, मेरा काम अब यहाँ चाची का बेटा मनोज सँभाल लेगा।’ जवाब तो किसी ने कुछ न दिया पर ख्याली ने गौर किया कि बापू और माँ उसे अलग ही चमक वाली आँखों से देख रहे हैं। इस चमक में बेटे के प्रति ऐसा यकीन भरा हुआ था जिसके आगे दुनिया की हर चीज की चमक फीकी थी।

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नीली आँखों के समंदर में खड़ा पहाड़

जैजों शहर के मरासी मुहल्ले में होने वाली सरगोशियाँ चमारों, कुम्हारों, लुहारों के मुहल्लों से होकर उड़ती-उड़ती हमारी छोटी दुकानों वाले बाजार में चक्रवात-सा धूमा करतीं। सब बहुत हैरान थे कि यह कैसे और क्यों हुआ कि कंजर मुहल्ले का खानदानी चौधरी अपनी जवान बेटियों को लेकर लाहौर चला गया।

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कवि सम्मेलन

हाट की रौनक और चहल-पहल देखकर नीलकमल की आँखें चौंधिया गईं। भाँति-भाँति की बहुरंगी दुकानों की भरमार, भोंपुओं की कानफाड़ू कर्कश आवाजें और एक-दूसरे से टकराकर गड्ड-मड्ड होता वर्णसंकर संगीत।

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बैटरी

उसकी आँखों के सामने एक के बाद एक, बैटरी के कई रूप अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहे थे–कार की बैटरी, फोन की बैटरी, उसकी खुद की भी; और खास तौर से उस अनजान फरिश्ते की, जो अपनी मदद की बैटरी से ताउम्र के लिए एक सुखद ऊर्जामयी अहसास छोड़ गया था।

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सौदा

सिंधु बॉर्डर से किसान आंदोलन को संबोधित कर जब घर आई तो पूसी काफी सुस्त और खिन्न लगी। जान पड़ता था, मेरी अनुपस्थिति में न तो किसी ने उसको ठीक से खिलाया-पिलाया था, न नहलाया-धुलाया ही।

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